( अमिताभ पाण्डेय )
भोपाल । ( अपनी खबर )
''इंसानियत से बढ़कर कोई मज़हब नहीं होता है। जो लोग इंसानियत के ख़िलाफ़ काम करते हैं, उनका सिर्फ़ 'ब्रैनवॉश' ही नहीं किया जाता, बल्कि उनका 'सोल (आत्मा ) वाश' भी कर दिया जाता है। दुनिया में नफ़रत की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।''
उक्त आशय के विचार चर्चित लेखिका निधि चापेकर ने विचार भारत भवन में चल रहे भोपाल लिटरेचर ऐंड आर्ट फेस्टिवल के दौरान व्यक्त किए। वे फेस्टिवल के दूसरे दिन अपनी किताब 'अन्ब्रोकन' पर साहित्यप्रेमियों से चर्चा कर रही थीं।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में ब्रसल्ज एयरपोर्ट धमाकों के बाद जेट एयरवेज की क्रू मैनेजर निधि चापेकर गंभीर रूप से घायल हुई।उन्हें देवयोग से ही जीवनदान मिला।
लेखिका निधि चाफेकर ने धमाकों में बुरी तरह ज़ख्मी होने की असहनीय पीड़ा और उससे उबरने के असाधारण संघर्ष को इस किताब में बखूबी बयाँ किया है।
बहुत कम समय में देश दुनिया में प्रसिद्ध हुई इस किताब " अन्ब्रोकन "का प्रकाशन मंजुल पब्लिशिंग हाउस के इंप्रिंट एमेरीलिस ने किया है। लेखिका से सेशन में मंजीव सिंह, मनीषा मोहन और स्मिता सिंह ने संवाद किया। संवाद में निधि चाफेकर ने कहा कि जीवन में कुछ लोग होते हैं, जिनका दिमाग संतुलन में नहीं होता। उनमें सोचने और समझने की कोई क्षमता नहीं होती।
ऐसे लोगों को भी चांस देने की ज़रूरत है, लेकिन हम अपनी ओर से कोई कोशिश ही नहीं करते हैं। ज़्यादातर लोगों की यह मानसिकता होती है कि वे ऐसा क्यों करें ? इससे उन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है, लेकिन ऐसा सोचना गलत है। मेरा मानना है कि यदि हम अपने आप को जगाएँगे, तो बदलाव ज़रूर आएगा।
लेखिका ने धमाकों के भयावह अनुभव को पाठकों , श्रोताओं के साथ साझा करते हुए कहा कि पहले उन्होंने इस घटना पर किताब लिखने के बारे में नहीं सोचा था।
इसके लिए मुझे परिवार ने प्रेरित किया। चाफेकर ने बताया कि , '' मैं डायरी लिखा करती थी। परिवार वालों ने उल्लेख किया कि लिखने का मेरा नज़रिया अलग है। मैं किताब लिख सकती हूँ। मैं धमाकों की पीड़ा से गुज़री, यदि यह एक पहलू था, तो दूसरा पहलू यह भी है कि मैं जीवित बच गई। यही जीवन का संतुलन है।'' उन्होंने बताया कि ब्रसल्ज में संकट के क्षणों में पाकिस्तान के शब्बीर नामक एक व्यक्ति ने भाई की तरह उनकी देखभाल की।
यह पूछे जाने पर कि क्या उस फ्लाइट पर जाने का आपको कोई अफ़सोस होता है, उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। ईश्वर ने उन्हें हमेशा 'बेस्ट' दिया है, जैसा वे माँगा करती थीं। जीवन में जो होना होता है, वह होकर रहता है। ज़िंदगी जीने के लिए 'रिस्क' तो लेनी ही पड़ती है, लेकिन सकारात्मकता बनी रहनी चाहिए।
एक श्रोता ने पूछा कि आतंकियों की मानसिकता को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है, तो उन्होंने कहा कि ब्रसल्ज धमाकों के लिए कुल तीन आतंकी आए थे। इनमें से दो मारे गए, लेकिन तीसरे ने आरडीएक्स होने बावजूद के विस्फोट नहीं किया। वह अभी जेल में है। उससे मिलने के लिए अर्ज़ी लगा रखी है। उसकी सोच समझने की इच्छा है।इस संवाद के दौरान बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
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