डिंडौरी
जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में रेवा स्वास्थ्य कैम्प के माध्यम से बांटी जा रही दादी की पोटली कुपोषण की जंग में वरदान साबित हो रही है। जिला प्रशासन द्वारा प्रत्येक शनिवार को आयोजित किए जाने वाले रेवा स्वास्थ्य कैम्पों के सकारात्मक परिणाम अब नजर आने लगे हैं। महिला बाल विकास विभाग द्वारा घर-घर जाकर सर्वप्रथम कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया गया। जिससे प्रत्येक बच्चे की निगरानी करना आसान हो गया। रेवा स्वास्थ्य कैंपों के माध्यम से चिन्हित कुपोषित बच्चों को दादी की पोटली उनके घरों तक पहुंचाने का जिम्मा जिला प्रशासन के समस्त अधिकारियों ने निभाया।
जिन्होंने गोद लिए बच्चों को दादी की पोटली निजी तौर पर जाकर सौंपी और निरंतर बच्चों की निगरानी करते रहे। जिनमें से 190 बच्चे अब सामान्य श्रेणी में आ गए। वहीं शेष 31 गंभीर कुपोषित बच्चों में सुधार जारी है। इसी क्रम में 261 कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने गोद लिया है।
कुपोषण के तीन मुख्य कारण अस्वच्छता, पोषक तत्वों का अभाव और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता का कम होना है। इन कारणों पर वार करते हुए दादी की पोटली दवाईयां, पोषण अनाज और स्वच्छता किट प्रदान करता है। दवाईयां में सितोपलादी चूर्ण, सुपुष्टि चूर्ण, वासकासव सीरअप, रोगों के प्रति रोधात्मक क्षमता बढाने में उपयोगी है, वहीं मूंगफली, फूटा, चना, गुड़ जैसे पोषक खाद्य द्वारा बच्चों को पोषणयुक्त भोजन मिल रहा है। कुपोषण का सबसे प्रमुख कारण अस्वच्छता है, इसलिए किट में रूमाल, टूथब्रस, नेलकटर, वैसलीन आदि स्वच्छता बढाने के लिए दी जा रही है। शनिवार को आयोजित होने वाले रेवा स्वास्थ्य कैम्पों में दादी की पोटली सभी चिन्हित कुपोषित बच्चों को प्रदान किया जाएगा।
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