हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष का पद नौ महीने से रिक्त, सरकार के 50 लाख रुपये बच गए

चंडीगढ़
हरियाणा में नई सरकार के गठन को 24 जुलाई को नौ महीने पूरे हो गए. हालांकि आज तक सदन में नेता प्रतिपक्ष (विपक्ष का नेता) का महत्वपूर्ण पद रिक्त है. यह इसलिए भी अत्यंत आश्चर्यजनक है क्योंकि विधानसभा के छह दशकों के इतिहास में पहली बार सदन में किसी विपक्षी दल के तीन दर्जन से ऊपर विधायक चुनकर आए हैं और अब तक नेता विपक्ष का चयन नहीं हो पाया है. हालांकि, इस वजह से नायब सैनी सरकार के 50 लाख रुपये बच गए.
दरअसल, वर्तमान 15वीं हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के 37 विधायकों ने सदन में अपना नेता नहीं चुना गया है और जिस कारण विधानसभा स्पीकर हरविन्द्र कल्याण की ओर से सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाना भी लंबित है.
हरियाणा में पंजाब की तर्ज पर नेता प्रतिपक्ष के लिए विशेष कानून तो नहीं बनाया गया है, लेकिन हरियाणा विधान सभा (सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन ) अधिनियम, 1975 की धारा 2 (डी) में सदन के नेता प्रतिपक्ष को परिभाषित किया गया है. 1975 कानून की धारा 4 में सदन में नेता प्रतिपक्ष के वेतन-भत्तों और अन्य सुविधाओं हेतु विशेष उल्लेख किया गया है और इस पद पर आसीन पदाधिकारी का दर्जा कैबिनेट मंत्री के समकक्ष होता है. इस प्रकार से हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद एक वैधानिक पद है. यहाँ तक कि नेता प्रतिपक्ष के वेतन -भत्तों आदि पर इनकम टैक्स (आयकर) का भुगतान भी प्रदेश के सरकारी खजाने से किया जाता है.
अब चूँकि गत नौ महीने से वर्तमान हरियाणा विधानसभा में विपक्ष का नेता नहीं है, तो इससे नेता प्रतिपक्ष (दर्जा कैबिनेट मंत्री के समकक्ष) के वेतन-भत्तों एवं अन्य सुविधाओं आदि होने वाला व्यय (खर्चा) न होने से प्रदेश के सरकारी खजाने में 50 लाख से अधिक की बचत अवश्य हुई है. प्रदेश सरकार के एक कैबिनेट मंत्री पर प्रतिमाह होने वाला कुल व्यय करीब चार से पांच लाख रुपये के बीच पड़ता है.
हुड्डा की दावेदारी थी मजबूत
नेता प्रतिपक्ष को राजधानी चंडीगढ़ में कैबिनेट मंत्री के सामान एक सरकारी आवास भी मिलता है. सनद रहे कि पिछली 14वीं हरियाणा विधानसबा में नेता प्रतिपक्ष रहे भूपेंद्र हुड्डा ने अब तक उन्हें सेक्टर 7 चंडीगढ़ में आबंटित सरकारी कोठी खाली नहीं की है, जिसके कारण उसका पीनल रेंट भी लगातार लग रहा है, जो उन्हें चुकाना पड़ेगा. गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के बात भी कांग्रेस में खींचतान कम नहीं हुई थी और इसी वजह से पार्टी नेता विपक्ष नहीं बना पाई. पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की दावेदारी मजबूर थी. फिर भी कोई फैसला नहीं हो पाया.
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