Latest Posts

देश

जिस भारतीय उपग्रह से ली Ayodhya की तस्वीर, उसी ने की थी सर्जिकल और एयरस्ट्राइक में सेना की मदद

15Views

अयोध्या

21 जनवरी 2024 को ISRO ने अयोध्या और श्रीराम मंदिर की सैटेलाइट तस्वीर जारी की. देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक संस्था ने पूरे देश को अंतरिक्ष से ही राम मंदिर के भव्य दर्शन कराए. लेकिन क्या आपको पता है कि ये तस्वीर किस सैटेलाइट ने ली. यह तस्वीर ली गई है. कार्टोसैट-2 (Cartosat-2) सीरीज की एक सैटेलाइट से. संभवतः यह कार्टोसैट-2/आईआरएस-पी7 या कार्टोसैट-2सी है. क्योंकि इनका रेजोल्यूशन एक मीटर के नजदीक है. हालांकि इसरो ने सिर्फ इतना ही बताया है कि ये कार्टोसैट सैटेलाइट है.

इस सीरीज में सात सैटेलाइट्स हैं. जो भारत की पूरी जमीन और उसकी सीमाओं पर नजर रखती हैं. इन सात में से एक सैटेलाइट देश की सेना इस्तेमाल करती है. जिसकी मदद से पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) और बालाकोट एयर स्ट्राइक (Balakot Airstrike) किया गया था. इन सैटेलाइट्स का इस्तेमाल चीन के साथ सीमा संघर्ष के दौरान भी किया गया था. इन सैटेलाइट्स से तो पाकिस्तान की हालत भी खराब होती है.

अयोध्या की तस्वीर 16 दिसंबर 2023 को ली गई थी. असल में ये अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स हैं. जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के इंडियन रिमोट सेंसिंग प्रोग्राम का हिस्सा है. जो पूरे देश में जमीनी विकास करने के लिए बनाए गए हैं. ये दो तरह के मैनेजमेंट में काम आते हैं. लैंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम और जियोग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम.

 

अयोध्या की तस्वीर में क्या दिख रहा था?

ISRO की तस्वीर में सिर्फ श्रीराम मंदिर ही नहीं बल्कि अयोध्या का बड़ा हिस्सा दिख रहा है. नीचे की तरफ रेलवे स्टेशन दिख रहा है. राम मंदिर के दाहिनी तरफ दशरथ महल दिख रहा है. ऊपर बाएं तरफ सरयू नदी और उसका बाढ़ क्षेत्र दिख रहा है. एक महीने पुरानी फोटो है. क्योंकि उसके बाद अयोध्या का मौसम बदलता चला गया है. कोहरा होने से दोबारा तस्वीर नहीं ली जा सकी. कार्टोसैट की इस सैटेलाइट का रेजोल्यूशन एक मीटर से कम है.

मंदिर निर्माण में भी हुई है ISRO की तकनीक

ये सैटेलाइट इतने ताकतवर हैं कि एक मीटर से कम आकार की वस्तु की भी स्पष्ट तस्वीर ले सकते  हैं. इन तस्वीरों को प्रोसेस और संभालने का काम हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) में किया जाता है. तस्वीर भी वहीं से जारी होती है. सिर्फ इतना ही नहीं मंदिर के निर्माण में ISRO की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

आप जानना चाहेंगे कि कैसे? असल में मंदिर का निर्माण करने वाली कंपनी लार्सेन एंड टुर्बो (L&T) ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) आधारित को-ऑर्डिनेट्स हासिल किए. ताकि मंदिर परिसर की सही जानकारी मिल सके. ये कॉर्डिनेट्स 1-3 सेंटीमीटर तक सटीक थे. इस काम में इसरो के स्वदेशी जीपीएस यानी NavIC यानी नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टीलेशन का इस्तेमाल किया गया. इसके जरिए प्राप्त सिग्नल से ही नक्शा और कॉर्डिनेट्स बनाए गए हैं.

 

admin
the authoradmin