ग्वालियर
अब छात्रों को स्कूल में मिलने वाले समोसे, पेस्ट्री, जूस या चाय के साथ यह जानकारी भी मिलेगी कि उनमें कितना तेल और शक्कर मिला है। CBSE ने एक नया सर्कुलर जारी किया है, जिसमें सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों को निर्देश दिए गए हैं कि कैंटीन, मेस या कैफेटेरिया में मिलने वाले खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त ऑयल और शुगर की मात्रा बोर्ड पर स्पष्ट रूप से लिखी जाए।
यह निर्णय बच्चों में बढ़ती मोटापा, डायबिटीज और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए लिया गया है। CBSE का मानना है कि यदि छात्र खुद यह जानेंगे कि वे क्या खा रहे हैं और उसमें कितनी कैलोरी, शुगर और फैट है, तो वे अपने खानपान को लेकर ज्यादा जागरूक होंगे।
ग्वालियर के स्कूलों में भी लागू होंगे नियम
ग्वालियर के सभी CBSE स्कूलों में अब कैंटीन के बाहर ऐसे बोर्ड लगाए जाएंगे, जिन पर हर स्नैक की पोषण जानकारी दी जाएगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी समोसे का वजन 100 ग्राम है तो उसमें लगभग 28 ग्राम तेल होता है, जिससे लगभग 362 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। इसी तरह एक 300ml कोल्ड ड्रिंक में 32 ग्राम शक्कर और 132 कैलोरी पाई जाती है।
सेहत के लिए फायदेमंद पहल
रिटायर्ड बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ए.पी.एस. जादौन का कहना है कि यह कदम खासतौर पर किशोरावस्था के छात्रों के लिए बेहद जरूरी है। इस उम्र में अनहेल्दी डाइट भविष्य में मोटापा, हृदय रोग और डायबिटीज जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है। इस तरह की पहल छात्रों को फूड अवेयरनेस के प्रति सजग बनाएगी।
स्कूल प्रिंसिपल और शहरवासी भी हुए सहमत
एक निजी स्कूल के प्राचार्य विनय झलानी ने CBSE की इस पहल को सराहा और कहा कि अब समय आ गया है कि हम बच्चों को पोषण से जुड़ा ज्ञान भी दें। स्कूल प्रशासन के मुताबिक वे जल्द ही इन न्यूट्रिशन बोर्ड्स को स्कूल में लगाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
वायरल अफवाह ने मचाई थी हलचल
कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक खबर वायरल हुई थी जिसमें दावा किया गया था कि अब हलवाई और होटल संचालकों को भी जलेबी, समोसे और अन्य पारंपरिक व्यंजनों में प्रयुक्त तेल और शक्कर की मात्रा बतानी होगी। हालांकि यह खबर अफवाह निकली, लेकिन इसने आमजन में हलचल जरूर मचा दी।
ग्वालियर के स्थानीय मिष्ठान विक्रेता दीपू गुप्ता ने बताया कि जलेबी और समोसे में आमतौर पर सरसों का तेल ही उपयोग होता है और किसी प्रकार की मिलावट नहीं की जाती। लेकिन हर चीज में तेल और शक्कर का प्रतिशत बताना तकनीकी रूप से जटिल है।
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