विदिशा जिले से निकलकर यूपी के जालौन में यमुना से मिलने वाली सिंध नदी का बुरा हाल हुआ

विदिशा
एमपी की एक बड़ी नदी सूख गई है। 470 किमी लंबे इलाके में बहने वाली यह नदी कई जगहों पर सूखकर गड्ढों में तब्दील हो गई है वहीं कुछ जगहों पर नदी पोखरनुमा बन गई है जहां बहुत कम पानी बचा है। नदी की दुर्दशा से इसके किनारों की बसाहटों में हाहाकार सा मच गया है। एमपी के विदिशा जिले से निकलकर यूपी के जालौन में यमुना से मिलनेवाली सिंध नदी का यह बुरा हाल हुआ है। भीषण गर्मी के कारण मार्च में ही सिंध नदी के सूख जाने से कई गांवों में पीने के पानी का संकट गहरा गया है।
सिंध नदी विदिशा जिले के सिरोंज तहसील के नैनवास कला स्थित ताल से निकलती है जोकि यमुना की सहायक नदी है।
यह नदी एमपी के गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर और भिंड जिलों से होकर बहती है उत्तरप्रदेश के जालौन जिले में यमुना नदी में मिलती है। इस प्रकार मालवा के पठार से उत्तर-उत्तर-पूर्व की ओर बहती हुई चंबल और यमुना के संगम के ठीक बाद यमुना में समाती है।
जब हर तरफ नदियों के प्रदूषित हो जाने से लोग चिंतित हैं तब सिंध नदी एक खुशनुमा एहसास कराती रही है। यह नदी देश की सबसे साफ सुथरी नदियों में शामिल है, बहुतायत में अब भी लोग सिंध के पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं।
यही कारण है कि सिंध नदी का सूख जाना लाखों लोगों के लिए चिंता का कारण बन गया है।
अशोकनगर में सिंध में पानी ही नहीं बचा है। जिले के अंतिम छोर पर पीलीघटा में नदी का दृश्य, सूखती सिंध की हालत के बारे में बहुत कुछ कह रहा है। यहां नदी के सूख जाने से पोखर बन गए हैं। इन हिस्सों में मवेशी अपनी प्यास बुझाने जाते हैं। अब इन पोखरों पर भी सकंट मंडरा गया है। इनमें भी आसपास के किसानों ने पाइप डाल रखे हैं और मोटर पंप से पानी खींचा जा रहा है।
सिंध की कुल 470 किलोमीटर (290 मील) की लंबाई में से 461 किलोमीटर (286 मील) मध्यप्रदेश में और महज 9 किलोमीटर (5.6 मील) उत्तर प्रदेश में हैं। सिंध के सूखने से इसके किनारों पर रहनेवालों के लिए पेयजल का संकट गहरा रहा है।
दतिया जिले के सेंवढ़ा तहसील के किसान और मल्लाह समुदाय के लोग अब भी सिंध नदी का पानी पीते हैं। पूरे इलाके में होनेवाली शादियों या धार्मिक कार्यक्रमों के लिए लोग सिंध का पानी ही सीधे इस्तेमाल करते हैं। नदी से टैंक में पानी स्टोर कर पेयजल के रूप मे इसका उपयोग करते हैं। सिंध किनारे स्थित खमरौली गांव के लोग कहते हैं कि यह दूसरी नदियों के पानी से कई गुना स्वच्छ है। बरसात के दिनों को छोड़ कर हम हर मौसम में सिंध का पानी पीते हैं।
सिंध नदी के स्वच्छ होने की पुष्टि कई सरकारी मानकों से भी होती है। इस नदी के कम प्रदूषित होने की सबसे बड़ी वजह मानव और औद्योगिक गतिविधियों का कम होना है। सिंध के किनारे पर एक भी बड़ी आबादी वाला शहर नहीं है। ग्वालियर जिले का डबरा सबसे बड़ा शहर है जिसकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार महज 2.37 लाख थी।
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा बेसिन में जिन 19 प्रमुख औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण के खतरे के मद्देनजर चिह्नित किया है उसमें एक भी सिंध नदी के तट पर नहीं है। इसके तट पर अधिकांश छोटे शहर या कस्बे हैं जहां बड़े उद्योग या कल-कारखाने नहीं हैं। सिंध किनारे के गांवों में मुख्यत: खेती और पशुपालन किया जाता है। सीमित संसाधन व कम जरूरत के कारण सिंध स्वच्छ बनी रही लेकिन इसके सूखने से चिंता व्याप्त हो गई है।
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