भारत का कोई भी स्कूल जबरदस्ती बच्चों के माता-पिता को अपार आईडी बनवाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता
बठिंडा, रामपुरा
बीते दिनों छुट्टियों से पहले, प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की अपार आईडी बनवाने के लिए स्कूलों द्वारा बच्चों के माता-पिता से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के लिए कहा गया। जिन माता-पिता ने अब तक यह फॉर्म जमा नहीं करवाए हैं, उनसे छुट्टियों के बाद दोबारा अपार आईडी के लिए सहमति पत्र भरवाने को कहा जा सकता है। यह बताना ज़रूरी है कि अपने बच्चे की अपार आईडी बनवानी है या नहीं, इसका निर्णय केवल माता-पिता का अधिकार है। अपार आईडी बनवाना शिक्षा विभाग द्वारा अनिवार्य नहीं है। यह एक विकल्प है, जिसका उपयोग करना या न करना माता-पिता की मर्जी पर निर्भर है। भारत का कोई भी स्कूल जबरदस्ती बच्चों के माता-पिता को अपार आईडी बनवाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। हालांकि, कुछ स्थानों पर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां स्कूलों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला।
क्या है अपार आईडी?
भारत सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत हर विद्यार्थी को 12 अंकों का एक यूनिक नंबर देने के उद्देश्य से अपार आईडी (Automated Permanent Academic Account Registry) की योजना शुरू की गई है। यह एक डिजिटल अकाउंट है, जिसमें विद्यार्थी के पूरे शैक्षिक जीवन की उपलब्धियां, जैसे कि स्कॉलरशिप, पुरस्कार, खेलों में प्रदर्शन, आदि का रिकॉर्ड रखा जाएगा। इसके जरिए बच्चे देश के किसी भी स्कूल में आसानी से दाखिला ले सकेंगे। हालांकि, इस आईडी को बनाने के लिए बच्चों के आधार नंबर, उम्र, लिंग, ब्लड ग्रुप, फोटो, और अन्य व्यक्तिगत जानकारी प्रदान करनी होगी। इसी जानकारी के लिए माता-पिता से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं।
माता-पिता क्या करें?
माता-पिता को यह जान लेना चाहिए कि अपार आईडी बनवाने के लिए आधार कार्ड या पैन कार्ड देना अनिवार्य नहीं है। माता-पिता अपनी पहचान के लिए वोटर आईडी, राशन कार्ड, या ड्राइविंग लाइसेंस की फोटोकॉपी भी दे सकते हैं। सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे ध्यान से पढ़ें। इसमें लिखा होता है कि आपके बच्चे का व्यक्तिगत डेटा सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है। यह स्पष्ट नहीं है कि ये एजेंसियां कौन सी होंगी और डेटा का इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
विवाद और शंका:
इस मुद्दे पर लोगों में कई प्रकार की आशंकाएं उठ रही हैं। कुछ का मानना है कि सहमति पत्र के जरिए बच्चों पर मेडिकल परीक्षण या अन्य प्रयोग किए जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, कोविड-19 वैक्सीन के मामलों में सहमति पत्र देने के कारण सरकार और कंपनियों के खिलाफ केस नहीं चल पाए।
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