बिहार

बिहार के हारे हुए कई नेता बने मोदी 3.0 सरकार में मंत्री, पशुपति बैठे रहे और उपेंद्र कुशवाहा गायब

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हाजीपुर.

लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन संसदीय दल के नेता नरेंद्र मोदी ने शपथ ले ली। रविवार को राष्ट्रपति भवन परिसर में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस मौजूद थे, लेकिन दर्शक दीर्घा में। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा तो पूरी तरह दृश्य से गायब थे। कॉल तक से दूर। यह दोनों केंद्र में सरकार बनाने वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के एक-एक घटक दल के नेता हैं।

दोनों के पास एक ही उम्मीद है, वह राज्यसभा की खाली हुई बिहार की एक सीट। दूसरी और बड़ी उम्मीद रविवार को टूट गई, जब लोकसभा चुनाव हारे हुए दूसरे राज्यों के कई नेता केंद्रीय मंत्री बन गए और 71 मंत्रियों की लंबी-चौड़ी सूची के लिए इनकी खोज-खबर नहीं ली गई।

राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर अब लोकसभा में
बिहार से दो राज्यसभा सांसदों ने लोकसभा चुनाव 2024 में किस्मत आजमाई। एक ने पहली बार और एक ने तीसरी बार। पहली बार किस्मत आजमाने वाले विवेक ठाकुर नवादा लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उतरे और जीत गए। विपक्ष में, राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती ने तीसरे प्रयास में पाटलिपुत्र सीट पर भाजपा कोटे के पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को शिकस्त दी। मतलब, बिहार की यह दो राज्यसभा सीटें खाली हुई हैं। इनमें से एक सीट भाजपा के पास थी और कायम भी रहनी चाहिए। ऐसे में किसी एक नेता को भाजपा राज्यसभा के जरिए दिल्ली तक खींच सकती है, यह पक्का है।

पशुपति की नजर पहले से इस विकल्प पर
अपने सगे भतीजे और दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को हाजीपुर सीट पर चुनाव में उतरने नहीं देने की जिद ठाने रहने के कारण पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। वह समय पर समझ नहीं सके कि भाजपा ने एक समय चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस को तवज्जो इस कारण दी थी कि नीतीश कुमार बुरा न मान जाएं। मोदी 2.0 में मंत्री बनने पर पारस को लगता रहा कि भाजपा के लिए वह चिराग से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इस भ्रम ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। वह हाजीपुर सीट पर उतरने के लिए जिद पर रहे और भाजपा ने इस सीट के लिए चिराग पासवान को कन्फर्म कर दिया। पारस तब भी यह नहीं समझ सके। जिद पर कायम रहने के कारण राजग के सीट बंटवारे में किनारे होने पर पारस ने आननफानन में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। वह बिहार आकर महागठबंधन के ऑफर का इंतजार करते रहे, लेकिन भाव नहीं मिला। इसके बाद पारस ने वापस राजग के प्रति आस्था जताई। कई प्रेस कांफ्रेंस किए। राजग की चुनावी जनसभाओं में भी रहे। इस दौरान अप्रैल में ही उन्होंने राज्यसभा से दिल्ली पहुंचने का भरोसा मिलने की बात कही। अब देखना है कि वह इस रास्ते दिल्ली पहुंचते हैं या नहीं। वैसे, पहुंचकर भी मंत्री का पद शायद ही हासिल कर सकें।

उपेंद्र कुशवाहा की स्थिति और भी बुरी
उपेंद्र कुशवाहा को भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उतरने का मौका दिया। उनकी पसंदीदा काराकाट सीट भी दी। लेकिन, पेच यह हो गया कि भाजपा की पहली सूची में आसनसोल से टिकट पाने वाले भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने काराकाट से नामांकन कर दिया। पवन सिंह को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने खुलेआम समझाया। लेकिन, दांव उलटा ही पड़ा। आरके सिंह की आरा सीट भी नहीं बची। काराकाट में उपेंद्र कुशवाहा तीसरे नंबर पर रहे। जीत महागठबंधन के वाम प्रत्याशी को मिली और पवन सिंह ने दूसरा स्थान हासिल किया। मतदान के पहले भले उपेंद्र कुशवाहा पवन सिंह को कुछ नहीं मान रहे थे और उन्हें कोई साजिश नहीं नजर आ रही थी, लेकिन अब वह इशारों में कह चुके हैं कि उनके साथ धोखा हुआ या किया गया- हरेक को पता है। कुशवाहा ने अपनी सीट से ज्यादा बिहार के राजग की बाकी सीटों पर जमकर प्रचार किया। कुशवाहा जाति के समूहों से मिलने गए। लेकिन, अपनी सीट पर राजग का एकमुश्त वोट हासिल नहीं कर सके। अब वह भी मान रहे हैं कि तेजस्वी यादव या मुकेश सहनी चुनाव से पहले जिस साजिश की बात कर रहे थे, उसमें दम था। ऐसे में अब भाजपा को दिखाना है कि उस साजिश में वह शामिल नहीं थी। इसका प्रमाणपत्र सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा की राजग में इज्जतदार जगह के लिए राज्यसभा का यही एक रास्ता है। देखना है कि भाजपा राज्यसभा के लिए उन्हें जगह देती है या नहीं।

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