India-China के बीच वार्ता LAC पेट्रोलिंग प्वाइंट पर अटकी, जाने मैकमोहन लाइन को नहीं मानता चाइना
नईदिल्ली
भारत और चीन के बीच एलएसी पर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पहली बार दोनों देशों के कोर कमांडर के बीच दो दिन बातचीत हुई. 13 और 14 अगस्त को हुई इस मीटिंग में लगभग 17 घंटे तक चर्चा हुई. लेकिन फिलहाल कोई खास नतीजा नहीं निकला.
इस मीटिंग में दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में विवाद को जल्द हल करने पर सहमति जरूर बनी. लेकिन पैट्रोलिंग प्वॉइंट्स से सैनिकों की वापसी को लेकर कोई संकेत नहीं मिले.
दोनों देशों के बीच ये बैठक चुशूल-मोल्डो बॉर्डर के पास हुई. इस बैठक के बाद बयान जारी किया गया. इसमें कहा गया है कि बातचीत सकारात्मक और रचनात्मक रही. साथ ही ये भी कहा गया है कि बाकी मुद्दों को सैन्य और राजनयिक माध्यमों से जल्द से जल्द सुलझाया जाएगा.
बताया जा रहा है कि इस बैठक में भारत ने देपसांग और डेमचोक समेत बाकी टकराव वाले प्वॉइंट्स से सैनिकों की जल्द वापसी को लेकर चीन पर दबाव डाला.
पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स का मामला क्या है?
– लद्दाख के साथ चीन से जो सीमा लगी है, उसे भारत वेस्टर्न सेक्टर कहता है. ये सीमा 1,597 किलोमीटर लंबी है.
– ईस्टर्न सेक्टर की सीमा तो ब्रिटिश राज में मैकमोहन लाइन से तय है. हालांकि, चीन इसे नहीं मानता है. लेकिन वेस्टर्न सेक्टर में एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा तय नहीं है.
– 1962 की जंग के बाद 1970 में पूर्वी लद्दाख से लगी एलएसी से भारत ने अपनी सेना हटा ली थी. इससे चीनी सैनिकों की घुसपैठ भी बढ़ गई. लिहाजा, जहां सीमाएं तय नहीं थी, वहां पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स बनाए गए, जहां भारतीय सेना गश्त लगा सके.
– 1976 में भारत ने एलएसी पर 65 पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स तय किए. पेट्रोलिंग प्वॉइंट 1 काराकोरम पास में है तो 65 चुमार में है. इन पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन इन्हें चिन्हित नहीं किया गया है.
पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स में होता क्या है?
– पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स से सीमा तय नहीं हुई है. लेकिन ये विवादित इलाके हैं. इन पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स पर दोनों देशों के सैनिक पेट्रोलिंग करते हैं. इसके लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय हैं.
– कहा जाता है कि कभी-कभी दोनों देशों के सैनिक एक ही समय में पेट्रोलिंग के लिए आ जाते हैं. ऐसे में प्रोटोकॉल ये है कि अगर एक पक्ष को दूसरे की पेट्रोलिंग टीम दिख जाए तो वो वहीं रुक जाएगा.
– एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी स्थिति में कुछ बोला नहीं जाता है. बल्कि बैनर दिखाया जाता है. भारत के बैनर में लिखा होता है- 'आप भारत के इलाके में हैं, वापस जाओ.' इसी तरह चीन के बैनर में लिखा होता है- 'आप चीन के इलाके में हैं, वापस जाओ.'
– हालिया सालों में देखने में आया है कि ऐसी स्थिति में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटने की बजाय आपस में भिड़ जाते हैं. यही वजह है कि एलएसी पर कई बार दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प और धक्का-मुक्की की खबरें आ रहीं हैं.
चीन के साथ क्या है सीमा विवाद?
चीन के साथ सीमा विवाद को समझने से पहले थोड़ा भूगोल समझना जरूरी है. चीन के साथ भारत की 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है. ये सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है.
ईस्टर्न सेक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है, जो 1346 किमी लंबी है. मिडिल सेक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा है, जिसकी लंबाई 545 किमी है. वहीं, वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख आता है, जिसके साथ चीन की 1,597 किमी लंबी सीमा लगती है.
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर अपना दावा करता है. जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है. इसके अलावा 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी.
1956-57 में चीन ने शिन्जियांग से लेकर तिब्बत तक एक हाईवे बनाया था. इस हाईवे की सड़क उसने अक्साई चिन से गुजार दी. उस समय अक्साई चिन भारत के पास ही था. सड़क गुजारने पर तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीनी राष्ट्रपति झोऊ इन लाई को पत्र लिखा. झोऊ ने जवाब देते हुए सीमा विवाद का मुद्दा उठाया और दावा किया कि उसके 13 हजार वर्ग किमी इलाके पर भारत का कब्जा है. झोऊ ने ये भी कहा कि उनका देश 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को नहीं मानता.
क्या है ये मैकमोहन लाइन?
1914 में शिमला में एक सम्मेलन हुआ. इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत. इस सम्मेलन में सीमा से जुड़े कुछ अहम फैसले हुए. उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची. इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया. इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था.
आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया. चीन ने दावा किया कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ.
चीन क्यों नहीं मानता ये लाइन?
चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. उसका कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. उसका कहना है कि तिब्बत उसका हिस्सा रहा है, इसलिए वो खुद से कोई फैसला नहीं ले सकता. 1914 में जब समझौता हुआ था, तब तिब्बत एक आजाद देश हुआ करता था. 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा कर लिया था.
भारत के किन-किन हिस्सों पर चीन के साथ विवाद है?
1. पैंगोंग त्सो झील (लद्दाख)
ये झील 134 किलोमीटर लंबी है, जो हिमालय में करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 44 किमी क्षेत्र भारत और करीब 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है. LAC भी इसी झील से गुजरती है. इस वजह से यहां कन्फ्यूजन बना रहता है और दोनों देशों के बीच यहां विवाद है.
2. गलवान घाटी (लद्दाख)
गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है. यहां पर LAC अक्साई चीन को भारत से अलग करती है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिन्जियांग और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है. जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी.
3. डोकलाम (भूटान)
वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है. ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक है. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं. भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है. 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव था.
4. तवांग (अरुणाचल प्रदेश)
अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर चीन की नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. 1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था. 1962 की जंग में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन युद्धविराम के तहत उसे अपना कब्जा छोड़ना पड़ा था.
5. नाथू ला (सिक्किम)
नाथू ला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है. ये भारत के सिक्किम और दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है. ये 14,200 फीट की ऊंचाई पर है. भारत के लिए ये इसलिए अहम है क्योंकि यहीं से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थयात्री गुजरते हैं. नाथू ला को लेकर भारत-चीन में कोई विवाद नहीं है. लेकिन यहां भी कभी-कभी भारत-चीन की सेनाओं में झड़पों की खबरें आती रही हैं.
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