नई दिल्ली
इस हफ्ते भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर को लेकर कई उत्साह बढ़ाने वाले अनुमान आए हैं. इन आंकड़ों से ये साफ नजर आ रहा है कि दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत ना केवल सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी बना रहेगा, बल्कि काफी बड़े अंतर से भारत ये मुकाम हासिल करेगा.
सबसे पहले बात करते हैं IMF के अनुमान की जिसमें कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस साल 7 परसेंट की ग्रोथ दर्ज करेगी. 2025 में भारतीय इकोनॉमी की चाल कुछ सुस्त होकर साढ़े 6 परसेंट पर आ सकती है.
IMF की बड़ी रिपोर्ट
IMF ने कहा है कि कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था फिर से अपने पुराने रूप में लौटने लगी है. इसके साथ ही, महंगाई को भी काफी हद तक काबू करने की बात इसमें कही गई है. हालांकि, कुछ देशों में अभी भी कीमतों पर दबाव बना हुआ है. इसके बाद S&P Global Market Intelligence की रिपोर्ट की बात करें तो इसमें कहा गया है कि भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 2024-25 में 6.8 फीसदी और 2025-26 में 6.6 परसेंट रह सकती है.
इसमें कहा गया है कि कमजोर सरकारी निवेश के बावजूद, भारत की घरेलू मांग, बेहतर मानसून और सरकारी सामाजिक खर्च इकोनॉमी की रफ्तार को बढ़ा रहे हैं. इसके साथ ही, महंगाई में गिरावट और सरकारी नीतियों का समर्थन भी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का काम करेगा. वहीं RBI के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पाटरा ने 2024-25 में भारतीय जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2 परसेंट रहने का अनुमान जताया है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के कारण
इसके बाद 2025-26 में इसके 7 फीसदी पर आने का अनुमान है, उनका मानना है कि भारत का समय आ गया है और देश अपनी युवा आबादी के चलते तेजी से विकास करेगा. भारत पहले से ही दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक ये तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. इसके पहले आए दूसरी दिग्गज एजेंसियों के भारत की ग्रोथ को लेकर जारी किए गए अनुमानों की बात करें तो वर्ल्ड बैंक ने कृषि उत्पादन, सरकारी खर्च और निजी निवेश में बढ़ोतरी के असर से 2024 के लिए 6.9 फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया है.
वहीं महंगाई में गिरावट और सरकारी सुधारों से अर्थव्यवस्था को हो रहे फायदों के चलते ADB ने 6.8 परसेंट ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है, जबकि गोल्डमैन सैश ने 2024 के लिए 7 परसेंट और ICRA ने 6.9 परसेंट ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है.
हालांकि, कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था में उछाल देखने को मिला है. लेकिन ग्लोबल अनिश्चितताओं और कमजोर बाहरी मांग के असर से इकोनॉमी अभी भी पूरी क्षमता के साथ प्रदर्शन नहीं कर पा रही है. इसके बावजूद, भारत की घरेलू मांग, स्थिर तेल की कीमतें और सरकारी निवेश अगले कुछ साल में अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में मदद करेंगे.
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