रायपुर
ईश्वर का महान प्रसाद है मानव जीवन। हमारे भीतर अनन्त की शक्ति है, अनन्त आनन्द का श्रोत है। आत्मा के अंदर अन्तरात्मा रूप से ईश्वर ही विराजमान है। आवश्यकता है आध्यामिक ज्ञान की, स्वर्वेद सद्ज्ञान की, विहंगम योग के ध्यान की, जिसके आलोक में एक साधक का जीवन सर्वोन्मुखी विकास होता है। उक्त उद्गार स्वर्वेद कथामृत के प्रवर्तक सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने संकल्प यात्रा के क्रम में महामाया मंदिर, नयी बस्ती में आयोजित जय स्वर्वेद कथा एवं ध्यान साधना सत्र में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं के मध्य व्यक्त किये।
महामाया मंदिर में विज्ञान देव जी महाराज कहा कि जीवन जीने में ही जीवन बीत न जाय बल्कि जीवन है क्या इसका अनुभव हो जाय। मैं कौन हूँ ? कहाँ से आया? क्या कर रहा और जाना कहाँ हैं? इसका ज्ञान हो जाय। जीवन और सत्य कोई दो वस्तु नहीं, जीवन कहें या सत्य कहें। जीवन मे जो सबसे महत्वपूर्ण है वह कुछ अन्य नहीं, जीवन की वास्तविकता ही है। क्योंकि जीवन का आधार परमात्मा है ।
उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिक देश रहा है, अध्यात्म से ही हमारी पहचान संपूर्ण विश्व में है, इसी आध्यात्मिक ज्ञान की धारा को विहंगम योग के प्रणेता अनन्त श्री सदगुरु सदाफल देव जी भगवान ने अपनी आत्मा में धारण किया और संपूर्ण विश्व की मानवता के कल्याण के लिए उसे स्वर्वेद में अभिव्यक्त कर दिया। आध्यात्मिक जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है। विहंगम योग विशुद्ध आध्यात्मिक मार्ग है। विहंगम योग से हम संसार के समस्त कर्तव्यों का पालन करते हुए सांसारिक कष्टों से ऊपर उठ जाते हैं। जीवन में स्वास्थ्य, सुख और शान्ति की त्रिवेणी को प्राप्त कर लेते हैं।
संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को विहंगम योग के क्रियात्मक योग साधना को सिखाया। कहा कि यह साधना खुद से खुद की दूरी मिटाने के लिए है। संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज की दिव्यवाणी जय स्वर्वेद कथा के रूप में लगभग 2 घंटे तक प्रवाहित हुई। स्वर्वेद के दोहों की संगीतमय प्रस्तुति से सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। दिव्यवाणी के पश्चात मुख्य आगंतुकों को संत प्रवर जी के हाथों विहंगम योग का प्रधान सद्ग्रन्थ स्वर्वेद भेंट किया गया।
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