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गैस पीड़ितों को उच्चतम न्यायालय से लगा झटका

2010 में दाखिल क्येरिटव पिटीशन को किया खारिज

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भोपाल। गैस पीड़ितों को उच्चतम न्यायालय से बड़ा झटका लगा है। क्योंकि मंगलवार को मामले की सुनवाई कर रही 5 सदस्यीय खंडपीठ ने उस क्येरिटव पिटीशन यानी उपचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें भोपाल गैस त्रासदी को लेकर डाउ केमिकल्स से अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई थी। लंबे समय से न्याय के लिये संघर्ष कर रहे गैस पीड़ितों को जहां इस फैसले ने सकते में डाल दिया है। वहीं राज्य व केंद्र सरकार के प्रयास भी निष्फल साबित हुए हैं।
     दरअसल 2010 में दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन पर जनवरी में सुनवाई पूरी करने के बाद मंगलवार को फैसला सुनाया। यह केंद्र सरकार द्वारा दाखिल की गई थी।  इसके मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से मौजूदा गैस प्रभावितों का आंकड़ा भी मांगा था। बावजूद इसके मंगलवार को अपने फैसले में साफ कर दिया है कि यूनियन कार्बाइड की अभिवावक कंपनी डाउ केमिकल्स से जो वन-टाइम डील 1989 में हुई थी, उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता। जबकि केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब उच्चतम न्यायालय ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से अधिक बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में क्षतिपूर्ति की राशि बढ़ना ही चाहिए। यदि उच्चतम न्यायालय मुआवजा राशि बढ़ा देता तो इसका लाभ भोपाल के 5.74 लाख गैस पीड़ितों को भी मिलता।

कब क्या हुआ

  • -2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई।
  • -4 मई 1989 को उच्चतम न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड केमिकल्स से 470 मिलियन डॉलर हर्जाना लेने का आदेश सुनाया।
  • -1991 में उच्चतम न्यायालय ने भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की रिव्यू पिटीशन खारिज की। हर्जाना बढ़ाने की मांग खारिज हुई थी। कहा था कि अतिरिक्त मुआवजा केंद्र सरकार को देना होगा।
  • -22 दिसंबर 2010 को केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में क्यूरेटिव पिटीशन लगाई। इसमें अतिरिक्त हर्जाना मांगा गया था।
  • -14 मार्च 2023 को उच्चतम न्यायालय ने इस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया।
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