–विदेशी प्रतिनिधियों ने भी स्टॉल में पहुंचकर देखा ज़री-ज़रदोजी का काम
भोपाल। राजधानी में आयोजित जी-20 यानी G20 के Think20 सम्मेलन में दुनिया के देश भले ही टेबिलों में बैठकर भविष्य के मुद्दों पर विमर्श करते हैं, लेकिन चर्चा का विषय भोपाली बटुआ Bhopali Batua ही है। यही वजह है कि कुशाभाऊ ठाकरे सभागृह परिसर में लगे स्टॉलों में सबसे ज्यादा भीड़ इसी के स्टॉल पर दिखाई देती है। यह इसलिये भी नबावों के समय से प्रचलन में आया यह बटुआ अपनी शिल्पकला के कारण मौजूदा समय में स्टेटस सेंबल भी बन चुका है।
दरअसल जी-20 देश के सदस्य राजधानी में पर्यावरण सम्मत जीवन शैली पर विचार करने के लिये राजधानी में एकत्रित हुए हैं। निर्धारित सत्रों में चर्चा के बाद समय का सदुपयोग करने वह मैदान में पहुंच रहे हैं। मप्र सरकार द्वारा यहां कई विभागों के माध्यम से हथकरघा, शिल्प सहित लघु उद्योगों से जुड़ी सामग्रियों का स्टॉल लगाया गया है। इसमें भोपाल और आसपास के क्षेत्रों में बनाया जाने वाला बटुआ भी है। जिसकी कीमत 1500 से 6000 के बीच है। स्टॉल की जिम्मेदारी संभाल रही फैशन डिजाइनर अर्चना विश्वकर्मा ने बताया कि भले ही लोगों ने इसे नहीं खरीदा है लेकिन इसको लेकर उत्सुकता कई लोगों ने दिखाई है। इसमें महिला ही नहीं पुरूष भी है। इस बीच इन्होंने कई तरह की जानकारियां भी प्राप्त की। साथ ही इसकी खूबियों की सराहना से भी बाज नहीं आए।
शिल्पकला दिखा रही है फिरोज जहां
इस स्टॉल से कूछ दूरी पर जरी-जरदोजी का ठीहा भी लगा है। जहां फिरोज जहां इसका प्रदर्शन भी कर रही है। इसके साथ ही वह कलाकृतियों की बारीकियों से भी अवगत कराती है। उनका कहना है कि भोपाल में पान-सुपारी खाने का रिवाज Culture था, इसलिए उन्हें रखे जाने के लिए छोटे-छोटे बटुए बनने लगे, जिसे भोपाली बटुए के रूप में Haritage पहचान मिली। इसके निर्माण में समय ज्यादा लगता है।
बड़े-बड़े रहे इसके कद्रदान
इस बटुए को पसंद करने वालों में महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी, पृथ्वी राजकपूर, राजकपूर, शम्मीकपूर, बैजंती माला सहित कई कलाकार और साहित्यकार रहे हैं। वहीं अब इस भोपाली बटुए Batua
को आज आम और नामी हस्तियों का फैशन सिंबल माना जाता है।
बनी हुई है बराबर मांग
इस काम में लंबे समय से विपणन में जुड़ी राजधानी की ही मीता बाधवा बताती है कि तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान, आसाम से भी बटुए के आर्डर आते हैं। इस कला की मांग अरब देशों से लेकर ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा तक है। क्योंकि यह दूसरी कलाकृतियों से अलग है।
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