पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ महीने में उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है, जोकि विश्वभर में प्रसिद्ध है. वैसे तो भारत के अन्य राज्यों और क्षेत्रों में भी रथयात्रा का आयोजन होता है. लेकिन पुरी की भव्य रथयात्रा को देखने के लिए देश-विदेश से लोग शामिल होते हैं.
इस साल 20 जून 2023 को जगन्नाथ रथयात्रा का पर्व मनाया जाएगा. भगवान जगन्नाथ के लिए रथ का निर्माण कार्य कई महीने पहले से शुरू हो जाता है और रथ बनाने के लिए जिन लकड़ियों का प्रयोग होता है उसमें सोने की कुल्हाड़ी से कट लगते हैं. आइये जानते हैं भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा और रथ से जुड़ी कुछ खास बातें.
रथ बनाने के नियम
रथ बनाने में दो महीने का समय लगता है और इस दौरान कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है. रथ बनने के लिए सबसे पहला और जरूरी काम होता है लकड़ियों का चुनाव. रथ के लिए कील वाली या फिर कटी हुई लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. रथ के लिए लकड़ी सीधी और शुद्ध होनी चाहिए. जब तक रथ बनकर तैयार नहीं हो जाता तब तक पूरे 2 महीने के लिए कारीगर भी वहीं रहते हैं और उन्हें भी नियमों का पालन करना पड़ता है.
रथ बनाने वाले कारीगर एक ही समय भोजन करते हैं, वे मांसाहार भोजन नहीं कर सकते उन्हें केवल सादा भोजन ही करना पड़ता है. इस दौरान कारीगरों को ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है. यदि कारीगर के परिवार में किसी सदस्य के साथ अनहोनी हो जाए जैसे सूतक या पातक लग जाए तो उस कारीगर को रथ निर्माण के काम से हटना पड़ता है.
सोने की कुल्हाड़ी से रथ की लकड़ी पर लगता है हैं कट
जगन्नाथ रथयात्रा के लिए रथ बनाने का निर्माण काम अक्षय तृतीया से दिन से ही शुरू हो जाता है. रथ बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां लाई जाती है, जिसके लिए मंदिर समिति के लोग वन विभाग के अधिकारियों को सूचना भेजते हैं और इसके बाद मंदिर के पुजारी जंगल जाकर उन पेड़ों की पूजा करते हैं, जिनकी लकड़ियों का इस्तेमाल रथ बनाने में होता है. पूजा के बाद उन पेड़ों पर सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाया जाता है. इस कुल्हाड़ी को पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है. लकड़ी में सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाने का काम महाराणा द्वारा किया जाता है.
रथ में इन पेड़ों की लकड़ियों का होता है इस्तेमाल
भगवान जगन्नाथ के रथ बनाने के लिए नीम और हांसी पेड़ों की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के एक-एक रथ बनाए जाते हैं. इस तरह से कुल 3 रथ बनाए जाते हैं. तीनों रथों के निर्माण में लिए लगभग 884 पेड़ों के 12-12 फीट के तने भी लगते हैं. इससे रथ के खंभे बनाए जाते हैं.
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