CRPF कोबरा कमांडो यूनिट में 34 महिला जवान, दिया जायेगा तीन माह का कठोर प्रशिक्षण
रायपुर
सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो दस्ते को विश्व के सर्वश्रेष्ठ बलों में शामिल किया गया है। यह दस्ता कई मायनों में अमेरिका के मरीन कमांडो को भी पीछे छोड़ देता है। अब सीआरपीएफ ने एक नया इतिहास रच दिया है। कोबरा दस्ते में अब महिला जवानों को शामिल किया जा रहा है। सीआरपीएफ की छह महिला बटालियनों में से 34 कार्मिक, कोबरा इकाई का हिस्सा बन गई हैं। इन्हें तीन माह का कठोर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
विशिष्ट फोर्स कोबरा यानी ‘कमांडो बटालियन फॉर रिसोल्यूट एक्शन’ दस्ते की खासियत है कि इसके कमांडो जंगल में बिना किसी मदद के 11 दिनों तक लड़ सकते हैं। यही वजह है कि कोबरा कमांडो को दुनिया के विभिन्न सुरक्षा बलों के मुकाबले विशिष्ट दर्जा हासिल है। महिला कमांडो की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इन्हें माओवादी क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा।
सीआरपीएफ डीजी डॉ. एपी माहेश्वरी के अनुसार, इस बल में महिला योद्धाओं का सुनहरा इतिहास है। इन महिला जवानों ने न केवल भारत में, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न शांति अभियानों में भाग लेकर विदेशी धरती पर भी अपना लोहा मनवाया है। सीआरपीएफ की 88वीं महिला वाहिनी का गठन 1986 में किया गया था। आज राष्ट्र सेवा में इस वाहिनी ने 34 वर्ष पूरे कर लिए हैं।
सात बहादुर शेरनियों ने कर्तव्य की वेदी पर सर्वोच्च बलिदान देकर खुद को अमर कर लिया है। बटालियन की महिला योद्धाओं ने वीरता के कई रिकॉर्ड बनाए हैं। अनेक वीरता पदकों के अलावा इन्हें शांतिकाल का सर्वोच्च वीरता पदक ‘अशोक चक्र’ भी प्रदान किया गया है। बता दें कि इस विशिष्ट फोर्स से अनेक कमांडो एसपीजी और जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा में तैनात होते रहते हैं।
कोबरा कमांडो के बारे में कहा जाता है कि ये कुछ बातों में अमेरिकन मरीन कमांडो से आगे हैं। पांच साल पहले गणतंत्र दिवस की परेड में ये कमांडो पहली बार नजर आए थे। इस खास इकाई का गठन बिल्कुल वैसे ही किया गया है, जिस आधार पर अमेरिकी कमांडो तैयार किए जाते हैं। कोबरा की ट्रेनिंग से लेकर उनके ऑपरेशन को अंजाम देने के तरीकों तक, बहुत कुछ यूएस मरीन कमांडो से मिलता है। खासतौर पर घने जंगलों में नक्सली और आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग दी गई है।
बात हथियारों की हो या अन्य दूसरे तकनीकी उपकरणों की, वे दूसरे बलों से अलग हैं। बिना किसी मदद के लगातार डेढ़ सप्ताह तक जंगलों में लड़ते रहना इस फोर्स की खासियत है। आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना लादेन को जिन अमेरीकन मरीन कमांडो ने मारा था, वे बिना किसी मदद के जंगल में लगातार तीन रातों तक लड़ सकते हैं। सीआरपीएफ के प्रत्येक कोबरा कमांडो के लिए ट्रेनिंग के दौरान सात दिन तक जंगल में लड़ने की परीक्षा पास करना अनिवार्य है।
अगर यहां पर वजन लेकर जंगल में नियमित रूप से लड़ते रहने का रिकॉर्ड देखें, तो वह ब्रिटेन के विशिष्ट कमांडो दस्ते एसएएस के नाम पर दर्ज है। इस दस्ते के जवान 30 किलो वजन उठाकर दस रातें जंगल में गुजार सकते हैं। कोबरा दस्ते की खास बात ये है कि इसके कमांडो 23 किलो वजन के साथ 11 रातों तक गहन जंगल से गुजरने में समर्थ हैं।
जवानों को पर्सनल आर्मर सिस्टम, ग्राउंड ट्रूप्स हेलमेट, यूएस के एम 1 हेलमेट और जर्मन आर्मी के स्टेहेलम हेलमेट मुहैया कराए जाते हैं। ये कमांडो इस्राइल निर्मित एमटीएआर व एक्स 95 राइफल जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहते हैं। कमांडो के पास जीपीएस के अलावा रात को देखने के लिए चश्मा होता है। कोबरा कमांडो जैमर और बुलेट प्रूफ तकनीक से लैस रहते हैं। महिला कमांडो को ट्रेनिंग के दौरान विशेष हथियार चलाना, सामरिक योजना बनाना, फील्ड क्रॉफ्टस, विस्फोटकों की पहचान और जंगल में जीवित रहने की कला सिखाई जाएगी।
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