बाराबंकी
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छोटे से गांव डलइपुरवा, अगेहरा की 17 वर्षीय पूजा पाल ने अपनी प्रतिभा और जज्बे से न केवल अपने गांव, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है। आर्थिक तंगी और सीमित संसाधनों के बीच, पूजा ने एक ऐसा धूल रहित थ्रेशर मॉडल बनाया, जो किसानों को धूल, बीमारी और परेशानी से बचाने का वादा करता है। इस नवाचार ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया और जापान में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका प्रदान किया। उनकी कहानी प्रेरणा का प्रतीक है, जो यह साबित करती है कि सपने और मेहनत के सामने संसाधनों की कमी कोई मायने नहीं रखती।
पूजा पाल का जन्म बाराबंकी के सिरौलीगौसपुर ब्लॉक के अगेहरा गांव में हुआ। उनके पिता पुत्तीलाल दिहाड़ी मजदूर हैं, और मां सुनीला देवी एक सरकारी स्कूल में रसोइया का काम करती हैं। पांच भाई-बहनों के साथ एक छप्परनुमा घर में रहने वाली पूजा की जिंदगी चुनौतियों से भरी रही। घर में बिजली और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं थीं, और पढ़ाई के लिए उन्हें दीये की रोशनी का सहारा लेना पड़ता था। फिर भी, पूजा ने कभी अपने सपनों को सीमाओं में नहीं बांधा। वह न केवल एक मेधावी छात्रा हैं, बल्कि घरेलू कामों में भी परिवार का सहारा बनी।
पूजा की प्रतिभा तब सामने आई, जब वह कक्षा 8 में पढ़ रही थीं। उनके स्कूल, पूर्व माध्यमिक विद्यालय अगेहरा के पास खेतों में थ्रेशर मशीन से गेहूं की मड़ाई के दौरान उड़ने वाली धूल बच्चों और आसपास के लोगों के लिए परेशानी का कारण बनती थी। धूल से होने वाली सांस की तकलीफ और पर्यावरण प्रदूषण को देखकर पूजा के मन में एक विचार आया—क्यों न ऐसा थ्रेशर बनाया जाए, जो धूल न फैलाए? अपने विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में, पूजा ने सिर्फ 3,000 रुपये की लागत से टिन, पंखे, लकड़ी और पानी के टैंक का उपयोग कर एक धूल रहित थ्रेशर का मॉडल तैयार किया। इस मॉडल में एक पंखा और जाली के साथ पानी का टैंक लगाया गया, जो धूल को थैले या टैंक में इकट्ठा कर लेता है, जिससे वातावरण स्वच्छ रहता है और किसानों को स्वास्थ्य समस्याओं से राहत मिलती है।
पूजा के इस नवाचार को सबसे पहले 2020 में जिला स्तर पर मान्यता मिली। इसके बाद, यह मॉडल मंडल, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनियों में सराहा गया। दिसंबर 2020 में लखनऊ की राज्यस्तरीय प्रदर्शनी और दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेले में इस मॉडल को खूब प्रशंसा मिली। 2023 में, पूजा का मॉडल भारत सरकार की इंस्पायर अवार्ड MANAK योजना के तहत राष्ट्रीय स्तर पर चुना गया, जिसमें पूरे भारत से केवल 60 प्रतिभागियों को विजेता घोषित किया गया था। पूजा उत्तर प्रदेश से एकमात्र विजेता थीं। इस उपलब्धि ने उन्हें भारत सरकार के साकुरा हाई स्कूल प्रोग्राम के तहत जापान यात्रा का मौका दिलाया, जहां उन्होंने टोक्यो के विश्वविद्यालयों और विज्ञान प्रयोगशालाओं का दौरा किया। उनके मॉडल को अब भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पेटेंट कराया जा रहा है, जो उनके आविष्कार की उपयोगिता और मौलिकता को रेखांकित करता है।
पूजा अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षक राजीव श्रीवास्तव और माता-पिता को देती हैं। राजीव श्रीवास्तव ने न केवल पूजा के विचार को प्रोत्साहित किया, बल्कि उनके मॉडल को इंस्पायर अवार्ड के लिए नामांकित भी किया। पूजा के माता-पिता, जो स्वयं आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, ने अपनी बेटी की पढ़ाई और सपनों को हमेशा प्राथमिकता दी। पूजा ने बताया, “मेरे माता-पिता ने मजदूरी करके भी मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। मेरे शिक्षक राजीव सर ने मुझे हर कदम पर मार्गदर्शन दिया।
पूजा की कहानी केवल एक आविष्कार की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी बेटी की कहानी है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। उनके घर में आज भी बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन जिला प्रशासन ने अब इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने का वादा किया है। पूजा का सपना है कि वह अपने गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाए और उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाए। उनकी उपलब्धियां न केवल बाराबंकी, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय हैं।
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