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चतुर्थ श्रेणी का आठवीं पास कर्मचारी भी बना दल प्रभारी

मप्र में एनजीओ और आऊटसोर्स के साथ संविदा कर्मचारी भी कराएंगे चुनाव

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भोपाल। निर्वाचन कार्य को जहां एक ओर संवेदनशील माना जाता है। वहीं दूसरी ओरएनजीओ, आऊटसोर्स के साथ ही संविदा कर्मचारियों व्यवस्थापक बना दिया गया है। चुनाव प्रबंधन का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि राजधानी में एक चतुर्थ श्रेणी के आठवीं पास कर्मचारी को 13 सदस्यीय दल का प्रभारी बना दिया गया है।

  सवाल इसलिये भी उठ रहे हैं क्योंकि कर्मचारी संवर्ग में वरिष्ठता और कनिष्ठता के मापदंड के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है। इसके बाद  नाप तौल विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी विक्रम सिंह के निर्देशों को मानने के लिये बतौर सहायक पटवारी दूसरे लिपिक वर्गीय संवर्ग के कर्मचारी बाध्य होंगे। बताया जाता है कि विक्रम को इसके पहले 2018 के विधानसभा चुनाव पीठासीन अधिकारी बना दिया गया था। इस बार की तरह तब भी यह प्रशासनिक त्रुटि जिम्मेदारियों के संज्ञान में लाते हुए पद के अनुरूप कार्य सौंपने का अनुरोध किया था। बाजवूद इसके संबंधित इसे नजर अंदाज करने से बाज नहीं आए।

बिना प्रशिक्षण कर्मचारियों को झोंका
जानकारी के अनुसार निर्वाचन कार्य की आड़ में विभागीय जिम्मेदारों ने प्रदेश भर में अप्रशिक्षित अमले को भी झोंक दिया है। जबकि इनमें कुछ एनजीओ, आऊटसोर्स और संविदा संवर्ग में सेवाएं दे रहे हैं।  राज्य शासन के नियमित अधिकारी-कर्मचारियों के विपरीत पहली बार चुनाव कार्य थोपे जाने के इनको भय सता रहा है।

महिलाओं को लेकर नहीं दिख रही संवदेनशीलता
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्यालयों में महिलाओं को शाम छह बजे के बाद जहां नहीं रोका जा सकता है। वहीं दूसरी ओर निर्वाचन कार्य  के बहाने जिम्मेदार अधिकारी महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मामले की धज्जियां उड़ाते हुए देखे जा रहे हैं। इसके चलते कई स्थानों पर शिफ्ट व्यवस्था नाम पर जहां घर-परिवार छोड़कर महिलाओं को देर रात तक सेवाएं देनी पड़ रही है। वहीं अवकाश के अभाव में अनावश्यक मानसिक अवसाद का  भी शिकार बन रही हैं।

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