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मप्र के नेताओं में नहीं रही जनप्रतिनिधि बनने की चाहत!

इसलिये नामांकन दाखिल करने में नहीं दिखाई रूचि

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पिछले 40 सालों में सबसे कम नामांकन की संभावना

भोपाल। मप्र के नेताओं में जनप्रतिनिधि बनने की चाहत नहीं बची! प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिये सामने आए नामांकन आंकड़े यही बताते हैं। नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन बात इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले 40 वर्षों में हुए विधानसभा चुनावों में इतनी कम नामांकन संख्या कभी सामने नहीं आई है।
दरअसल निर्वाचन आयोग में अब तक 1466 नामांकन ही मिल पाए हैं। आम नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि है। ऐसे में प्रदेश भर में यह आंकड़ा 2000 तक पहुंचता भी नहीं दिखाई दे रहा है। इसके चलते 5.61 करोड़ मतदाताओं के सामने प्रत्याशियों के विकल्प का संकट खड़ा हो गया है। क्योंकि मौजूदा समय में 6 से अधिक नहीं है। हालांकि आज अंतिम तिथि को देखते हुए बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाया गया है। बावजूद इसके 8 से ज्यादा नहीं माना जा रहा है।

2018 में प्रति विधानसभा 12 का विकल्प

बीते 2018 के चुनावों में नामांकन दाखिल करने वाले अभ्यर्थियों का आंकड़ा करीब 4000 तक पहुंच गया था। तब नामांकन निरस्तगी और नाम वापसी के बाद भी 2899 उम्मीदवार मैदान में डट गए थे। विधानसभा निर्वाचन 2023 के लिये प्रदेश भर में जमा हुए 1466 नामांकन पत्रों की संख्या के मुकाबले यह 51 प्रतिशत भी नहीं है।

वोट बताएंगे सामाजिक हैसियत
कम नामांकन देखते हुए लोगों के बीच कई तरह की चर्चाएं है। इनमें वोट के रूप में आई नेताओं की सामाजिक हैसियत का खुलासा होना भी है। प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभ्यर्थियों की संख्या में कमी के पीछे हालांकि कोई ठीक कारण सामने नहीं आए हैं। बावजूद इसके कि रूठों को मनाने कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों द्वारा अपनाई गई रणनीति अहम मानी जा रही है। इसके अलावा 2018 के चुनाव परिणाम को भरी सचेत करने वाला माना जा रहा है। क्योंकि इसमें शामिल हुए कुल अभ्यर्थियों में 2390 अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे।

विकल्प का अभाव


प्रत्येक विधानसभा चुनाव में जनता जनप्रतिनिधि चुनने बेहतर प्रत्याशी का इंतजार करते हैं। मप्र में इस बार 5.61 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने की तैयारी में है। इसके बाद भी विकल्प का अभाव बना हुआ है। क्योंकि इसकी संख्या औसतन 6 से अधिक नहीं है। जबकि बीते चुनावों में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों का आंकड़ा 12 तक पहुंच गया था।

बीते 40 सालों में सबसे कम नामांकन
वर्ष 1985 से चले आ रहे विधानसभा चुनावों के बीच इसे सबसे कम नामांकन मान जा रहा है। क्योंकि इस दौरान नामांकन का आंकड़ा सदैव 4 हजार से अधिक रहा है। 2008 के चुनावों में सबसे ज्यादा 4576 नामांकन दाखिल हुए थे। जबकि इसके पहले 2003 में 3061 और 2013 में नामांकन संख्या 3741 रही है।

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