चुभते वचनों ने पंडित जसराज को बना दिया संगीत मार्तण्ड
पंडित जसराज (जन्म-28-01-1930 से मृत्यु 17-08-2020) )

तीसरी पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि
भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों में से एक हैं। इनका जन्म हिसार, हरियाणा के पीली मण्डोरी गांव में हुआ। आपके परिवार में लगभग 400 वर्षों से संगीत की अविरल धारा प्रवाहित थी। आपके पिता पंडित मोतीराम जी अपने समय के अत्यंत प्रसिद्ध गायक थे। पंडित जसराज जी के बड़े भाई और गुरु पंडित मणिराम जी भी श्रेष्ठ गायक थे। सन 1933 में हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली ने पंडित मोतीराम जी को अपने राज्य का राज्य गायक नियुक्त किया, जिसके समारोह में शामिल होने पंडित जसराज भी अपने पिता और बड़े भाई के साथ हैदराबाद गये थे। होनी को कुछ और ही मंजूर था। मुख्य समारोह के एक दिन पहले ही अचानक पंडित मोतीराम जी का निधन हो गया। ऐसे अप्रत्याशित घोर दुख के कारण परिवार के सामने बहुत बड़ा संकट आ गया। कुछ दिन बाद 3 वर्ष के जसराज अपने बड़े भाई के साथ घर आ गए। पिता के निधन के बाद परिवार में बहुत आर्थिक तंगी आ गई। बड़े भाई ने होश संभालते ही संगीत शिक्षा देना शुरू किया जिसकी आय से परिवार की गाड़ी चल सके। कुछ दिन बाद लाहौर के एक संगीत विद्यालय में पंडित मणिराम जी अध्यापक हो गए। खुद गाते और जसराज को तबला सिखाने लगे। 15 वर्ष की उम्र तक जसराज तबला बजाते रहे। युवा होते ही पंडित मणिराम की गायक के रूप में प्रसिद्धि निरंतर बढ़ गयी। जसराज भी तबले में नाम कमाने लगे थे तभी सन 1945 में वह घटना घट गई, जिसने न केवल दिशा बदल दी बल्कि पंडित जसराज को संगीत मार्तंण्ड बना दिया।
उन दिनों लाहौर में आकाशवाणी का संगीत सम्मेलन था जिसमें शामिल होने देश के सभी प्रतिष्ठित और युवा कलाकार वहां पहुंचे थे। तब के उभरते शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व ने संगीत सम्मेलन की एक संध्या को राग भीमपलासी गाया जिनके साथ जसराज तबले की संगत कर रहे थे। दूसरे दिन फुरसत में इंदौर घराने के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित अमरनाथ जी ने पंडित मणिराम जी से चर्चा के दौरान कहा कि कल कुमार गंधर्व जो भीमपलासी गा रहे थे उसमें गड़बड़ी थी। पंडित मणिराम कुछ बोलते इससे पहले ही 15 वर्षीय जसराज ने अपने से बड़े नामी गायक की इस बात का प्रतिवाद किया और बोले कि कुमार गंधर्व बिल्कुल ठीक गा रहे थे। पंडित अमरनाथ जी ने जसराज के दुस्साहस पर उनको डांटते हुए कहा कि-तुम चमड़ा पीट कर तबला बजाने वाले जसराज, तुम सुरों की बारीकी क्या जानो, चमड़ा पीटते हो वही करो।
पंडित अमरनाथ की यह बात जसराज के कलेजे में लग गयी। जसराज बचपन से ही कृष्ण भगवान के भक्त थे। दो दिन बाद जन्माष्टमी थी। जसराज ने उस दिन भगवान के सामने जाकर रोते हुए संकल्प लिया कि अब मैं जब तक सुरों की बारीकी सीख नहीं जाता, गायक नहीं बन जाता तब तक मैं अपने केश नहीं कटाऊँगा। उन्होंने यह बात अपने बड़े भाई और गुरु पंडित मणिराम जी से भी कहा। मणिराम जी भी अपने अनुज का दृढ़ व्रत देखकर उन्हें गायकी ही सिखाने लगे।
5-6 वर्ष सीखने के बाद जब कोलकाता के संगीत समारोह में जसराज ने अपनी गायन प्रस्तुति दी तो सारे गुणीजनों ने वाह वाह करते हुए जसराज को आशीर्वाद से भर दिया। उन्होंने 22 साल की उम्र में गायक के रूप में अपना पहला स्टेज कॉन्सर्ट किया। मंच कलाकार बनने से पहले, जसराज ने कई वर्षों तक रेडियो पर एक प्रदर्शन कलाकार के रूप में काम किया। विगत 60 वर्षों से पंडित जसराज की ललित, रससिक्त और मधुर आवाज ने संगीत प्रेमियों को आनंदित किया है। सुदीर्घ कालावधि की साधना और प्रस्तुतियों के नाते पंडित जसराज की प्रतिभा सम्पूर्ण विश्व के संगीत प्रेमियों तक पहुंची है।
भारत के सारे संगीत समारोहों, आकाशवाणी के सम्मेलनों में प्रतिभाग के अलावा पंडित जसराज जी ने विश्व के सातों महाद्वीपों में अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। वे अकेले शास्त्रीय गायक हैं जिन्होंने उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों पर गायन किया।अनेक फिल्मों व वृत्तचित्रों में संगीत देने के अलावा वे विश्व के अनेक देशों में स्थापित अपने गुरुकुल से योग्य शिष्यों को तैयार करने में योगदान दिया।
प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक संजीव अभ्यंकर उनके शिष्य हैं। फिल्मों के मशहूर कलाकार शंकर महादेवन, साधना सरगम, अनुराधा पौडवाल, कविता कृष्णमूर्ति आदि गायक इनकी शिष्य परम्परा में ही गिने जाते हैं। शास्त्रीय और अर्ध-शास्त्रीय स्वरों के उनके प्रदर्शनों को एल्बम और फिल्म साउंडट्रैक के रूप में भी बनाया गया हैं। पण्डित जसराज ने भारत, कनाडा और अमेरिका में संगीत सिखाया है। पंडित जी के अद्भुत जीवन पर अनेक शोध हो चुके हैं, दर्जनों पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, वृत्तचित्रों और फिल्मों का निर्माण हुआ है। इधर के वर्षों में विदुषी सुनीता बुद्धिराजा ने उनकी सम्पूर्ण जीवनी बहुत मेहनत और भावनापूर्ण ढंग से लिखी है जिसका शीर्षक है -रसराज-पंडित जसराज।
पंडित जी ख्याल गायन में तो अपने मेवाती घराने के सारे सौंदर्य के साथ उपस्थित ही रहते हैं किंतु भक्ति गायन को उनकी आवाज ने बहुत ऊंचाई प्रदान की है। पंडित जसराज ने एक अनोखी जुगलबंदी की रचना की। इसमें महिला और पुरुष गायक अलग-अलग रागों में एक साथ गाते हैं। इस जुगलबंदी को जसरंगी नाम दिया गया। पंडित जसराज ने जुगलबंदी का एक उपन्यास रूप तैयार किया, जिसे जसरंगी कहा जाता है, जिसे मूर्छना की प्राचीन प्रणाली की शैली में किया गया है जिसमें एक पुरुष और एक महिला गायक होते हैं जो एक समय पर अलग-अलग राग गाते हैं। उन्हें कई प्रकार के दुर्लभ रागों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाना जाता है जिनमें अबिरी टोडी और पाटदीपाकी शामिल हैं।
भगवान कृष्ण की प्रीति में उनका गाया मधुराष्टकम बहुत लोकप्रिय है। उनकी गाई राम,कृष्ण,दुर्गा और हनुमान की स्तुतियां अद्भुत और अपूर्व हैं। मधुराष्टकम् श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित भगवान कृष्ण की बहुत ही मधुर स्तुति है। पंडित जसराज ने इस स्तुति को अपने स्वर से घर-घर तक पहुंचा दिया। पंडित जी अपने हर एक कार्यक्रम में मधुराष्टकम् जरूर गाते थे। इस स्तुति के शब्द हैं –
अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
साभार
प्रो0 प्रकाश चन्द्र गिरी एवं विकिपीडिया
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