कोलकाता
तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल में एक बार फिर राज्यपाल बनाम सरकार शुरू होता नजर आ रहा है। खबर है कि कुलपति की नियुक्तियों को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार और राज्यपाल सीवी आनंद बोस आमने-सामने आ गए हैं। गुरुवार को ही बोस ने 11 विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्तियां की हैं। टीएमसी राजभवन के इस कदम को 'गैरकानूनी' बता रही है।
क्या है मामला
गुरुवार को कल्याणी विश्वविद्यालय, बर्दवान विश्वविद्यालय, संस्कृत कॉलेज और विश्वविद्यालय, सिधो कान्हो बिरसा विश्वविद्यालय, काजी नजरुल विश्वविद्यालय, दक्षिण दिनाजपुर विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय, जाधवुर विश्वविद्यालय, बांकुरा विश्वविद्यालय, बाबा साहब आंबेडकर एजुकेशन विश्वविद्यालय, डायमंड हार्बर महिला विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर 11 नियुक्तियां की गईं थीं।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों को लेकर अटकलों का दौर अप्रैल में ही शुरू हो गया था। उस दौरान राज्यपाल ने 29 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से अपने 5 सबसे अनुभवि और योग्य प्रोफेसर्स की लिस्ट मांगी थी। कहा जाने लगा था कि इसके जरिए राज्यपाल उम्मीदवारों की तलाश के लिए एक डेटाबेस तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। खबर है कि यह फैसला लेने से पहले राज्यपाल ने इन प्रोफेसर्स को मिलने के लिए बुलाया था।
क्या है टकराव की वजह
दरअसल, बीते साल ही 29 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का कार्यकाल खत्म हो गया था, जिसके बाद 31 मई तक सेवाओं में विस्तार दिया गया था। खास बात है कि हाल ही में राज्य सरकार ने उम्मीदवारों के चयन के लिए कमेटी गठित करने की प्रक्रिया की शुरुआत की थी।
टीएमसी का तर्क
राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने इसे गैर कानूनी बताया है और शिक्षकों से पद स्वीकार करने के लिए मना करने की अपील की है। बसु ने कहा, 'मुझे मीडिया से नियुक्तियों के बारे में पता चला। विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करना प्रक्रिया का उल्लंघन है। शिक्षा विभाग को इससे बाहर रखा गया था। यह पूरी तरह गैरकानूनी है।' उन्होंने ट्वीट किया, 'हम अगले कदम के लिए कानूनी सलाह ले रहे हैं। शिक्षा विभाग की तरफ से अनुरोध किया जा रहा है कि गैरकानूनी तरीके से नियुक्त किए गए वीसी पद लेने से इनकार कर दें।'
बसु का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्यपाल प्रदेश सरकार से चर्चा कर कुलपति की नियुक्ति करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि अब इस तरह की और नियुक्तियां भी हो सकती हैं। खबरें हैं कि कई पूर्व और मौजूदा कुलपतियों ने भी आरोप लगाए हैं कि बोस कुलपतियों को नियमों का उल्लंघन करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। नियमों के अनुसार, राज्यपाल सीधे कुलपतियों से रिपोर्ट नहीं मांग सकते।
4 अप्रैल को बोस ने सभी कुलपतियों को उन्हें साप्ताहिक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था। साथ ही निर्देश दिए थे कि वित्तीय फैसले लेने से पहले उनकी मंजूरी ली जाए। हालांकि, कुलपतियों की तरफ से उनके आदेश को नहीं माना गया, जिसकी प्रतिक्रिया में राज्यपाल ने 23 मई को पत्र लिखकर रिपोर्ट भेजने के लिए कहा। इसके बावजूद जवाब नहीं मिलने पर 6 विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी।
पहली बार नहीं है टकराव
फरवरी में ही राज्यपाल ने प्रमुख सचिव नंदिनी चक्रवर्ती को सेवा मुक्त कर दिया था। कहा जा रहा है कि राज्यपाल और ममता सरकार के बीच पहला टकराव इस मुद्दे पर ही हुआ था। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं। ममता सरकार ने उनपर भी केंद्र सरकार के इशारों पर काम करने के आरोप लगाए थे। दोनों पक्षों के बीच तनातनी कई मौकों पर खुलकर सामने आई थी।
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