कमल पटेल
(लेखक किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री मध्यप्रदेश शासन हैं)
मध्यप्रदेश के इतिहास में कृषि के उत्थान को लेकर जो कार्य मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में किए गए है वह इससे पहले कभी नहीं हुए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मुझे कृषि मंत्रालय के माध्यम से किसानों के हित में कार्य करने का मौका मिला। चूंकि मैं मंत्री बाद में बना इससे पहले कृषक पुत्र होने के साथ ही स्वयं आज भी कृषि कार्य को अपनाता हूं इसलिए कृषि में आने वाली किसानों की मूल समस्याओं से भली भांति वाकिफ हूं।
मध्यप्रदेश में कृषि उत्थान का कार्य किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशानुकूल हम किसान की आय दोगुनी करने में कामयाब हो रहे है। जिसके चलते मध्यप्रदेश को लगातार कृषि कर्मण अवार्ड भी हासिल हो रहे है, लेकिन आज भी मन में कसक है कि किसानों की आर्थिक स्थिति और कैसे सुदृढ़ की जा सके। कृषि से जुड़े कार्यबल को साथ लिए बगैर हम अर्थव्यवस्था का समुचित विकास नहीं कर सकते। वजह यह भी है कि संपूर्ण देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगभग 15 प्रतिशत है। वहीं देश का 50 प्रतिशत कार्यबल आज भी कृषि कार्य में लगा हुआ है।
आज हमारी सरकार के माध्यम से जहां किसानों को सस्ती दरों पर विद्युत आपूर्ति की जा रही है, वहीं समर्थन मूल्य के माध्यम से कृषि उत्पादों के उचित दाम प्रदाय कराए जा रहे है। सिंचाई का रकबा हो चाहे खेतों तक पहुंचने के मार्ग हो हर दिशा में हमारी सरकार ने ठोस काम किए है। लेकिन वर्तमान में आधुनिक तकनीक से कृषि उत्पादन बढ़ाने की चाह में हमारे किसान भाई भरपूर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे है, जो कि न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए अपितु जीव मात्र के लिए हानिकारक है। इसके दुष्परिणाम हमारे सामने आने लगे है।
जब मैं विधायक बना था तब मेरे पास साल में बमुश्किल दो चार प्रकरण कैंसर पीडि़त लोगों की सहायतार्थ आते थे परंतु अब हर महीने 8-10 मामले कैंसर पीडि़तों के आने लगे है। मध्यप्रदेश से पहले पंजाब कृषि उत्पाद के मामले में काफी अग्रणी प्रदेश माना जाता था। वहां के किसानों ने भी भरपूर कीटनाशकों का प्रयोग करते हुए कृषि उत्पाद में तो प्रदेश को अग्रणी बना दिया, लेकिन कैंसर का ऐसा बीजारोपण किया कि आज सरकार को वहां से कैंसर ट्रेन ही चलाना पड़ गई। मैं नहीं चाहता कि मध्यप्रदेश में ऐसे हालात निर्मित हो। इससे बचने का एकमात्र उपाय कृषि वानिकी और प्राकृतिक कृषि है। कृषि वानिकी के माध्यम से किसान आय के अतिरिक्त स्त्रोत विकसित कर सकते है। यह एक ऐसा प्राकृत विज्ञान है जिसके माध्यम से हम कृषि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के साथ ही पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए एक सुनहरे कल का निर्माण कर सकते है।
कृषि वानिकी के माध्यम से हम कृषि अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा प्रदान कर सकते है। जिससे कृषि क्षेत्र में और भारतीय अर्थव्यवस्था में एक क्रांति का आगाज हो सकता है। हमारे प्रदेश की जीवन रेखा मां नर्मदा तथा अन्य सहायक नदियों की रक्षा के लिए इस माध्यम से एक मुहिम चलाई जा सकती है। जिससे मृदा की गुणवत्ता और जल के स्तर को यथावत बनाए रखा जा सकता है। नदियों के किनारे पेड़ लगाकर क्षेत्रीय जलवायु के अनुसार कृषि के तरीके में परिवर्तन करके कृषि वानिकी अपनाते हुए सफलता पाई जा सकती है। इससे पॉलीक्लचर को भी प्रोत्साहन मिलता है और किसानों की आय थी बढ़ती है। मैनें देखा है कि महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखंड, उत्तराखंड और कर्नाटक में इस दिशा में नीतियां बनाकर कार्य प्रारंभ किए गए है।
अगर हमारे मध्यप्रदेश में भी किसान अपने खेतों की मेड़ों पर, कृषि के कुछ भाग को तथा जो खेत नदी-नालों के किनारे है वहां पर बांस, सागौन, जामुन, मुंगना जैसे पेड़ों का रोपण करता है तो उससे न केवल खेतों की मिट्टी बहकर नदी नालों में जाने से बचेगी बल्कि नदी-नालों का कटाव भी होने से रुकेगा। इन पेड़ पौधों के कारण भूजल स्तर में वृद्धि होगी तो दूसरी ओर हमारी नदियां सदा नीरा बन जाएगी। खेतों के कुछ भूभाग में लगाए गए यह पेड़ जहां किसानों के लिए मुसीबत के समय बीमा का काम करेंगे तो वहीं इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि होगी।
मैं प्रदेश के किसानों से विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आव्हान करता हूं कि आधुनिकता की इस चकाचौंध से परे हटकर हमारे मानव जीवन की सार्थकता को सिद्ध करते हुए पेड़ पौधों का रोपण कर एक ऐसे सुनहरे कल का निर्माण करें जो हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए विषधर नहीं अमृत हो। कृषि वानिकी के माध्यम से प्राकृतिक कृषि को अपनाते हुए हम शुद्ध खानपान और शुद्ध वायु प्रदाता बने।
हम सौभाग्यशाली है कि आज दुनिया में सर्वाधिक पशुधन भारत के पास है। वर्ष 2019 में की गई पशुगणना के अनुसार भारत में गायों की आबादी 192.5 मिलियन है, वहीं कुल गौ जाति आबादी जिसमें गाय, भैंस शामिल है 302.3 मिलियन है। इस तरह हम आज दुनिया में पशुधन के मामले में नंबर वन है। तो क्यों नहीं गौ आधारित प्राकृतिक कृषि को अपनाकर भी हम नंबर वन बने।
ग्लोबल वार्मिंग के भयानक खतरे को लेकर आज पूरी दुनिया हलाकान है। ऐसी स्थिति में कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्राकृतिक कृषि के माध्यम से विश्व पटल पर भारत का नाम अंकित कर सकता है। हमने पिछले कुछ ही वर्षों में शासकीय स्तर पर किसानों को प्रेरित करते हुए जैविक कृषि के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई हासिल की है।
आज मुझे यह बताते हुए हर्ष है कि जहां देश के कुल 43 लाख हेक्टेयर कृषि रकबे में जैविक खेती की जाती है तो वहीं उसमें से हमारे मध्यप्रदेश में 17.31 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती की जा रही है।
प्राकृतिक खेती किसानों को महंगे रसायनों, उर्वरकों और बीजों की खरीद के लिए कर्ज की पीड़ा से मुक्ति दिला सकती है। वहीं दूसरी ओर अपने खेत पर ही उपलब्ध कृषि आदानों के उपयेाग से कृषि आय को बढ़ाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती वनस्पतियों पर निर्भरता के कारण रसायनों का उपयोग खत्म करती है जिससे स्वस्थ्य तथा पौष्टिक भोजन के साथ कृषि से कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है।
प्राकृतिक खेती का जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करते हुए दीर्घकालिक लाभ प्रदान करती है।
मुझे प्रसन्नता है कि आज हमारा हरदा जिला कृषि वानिकी के माध्यम से विश्व मानचित्र पर लाखों करोड़ों पौधों के रोपण करते हुए अपना नाम अंकित कर रहा है। इस वर्ष भी हमारे हरदा के प्रथम जिला पंचायत अध्यक्ष पर्यावरण प्रेमी मेरे अग्रज गौरीशंकर मुकाती के मार्गदर्शन में हरदा के साथ ही अब नर्मदापुरम्, सीहोर, नरसिंहपुर आदि नर्मदा के तटवर्तीय जिलों में भी 1.20 करोड़ पौधरोपण के वृहद लक्ष्य के साथ पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक अभियान का शंखनाद किया जा रहा है। जिसमें हमारे समुचे नर्मदांचल के किसानों ने अपनी गहन रुचि दिखाते हुए अग्रिम सहमति प्रदान की है।
मैं इसी तरह मध्यप्रदेश के अन्य क्षेत्रों के किसानों से भी आव्हान करता हूं कि वह अपने-अपने क्षेत्रों में कृषि वानिकी और प्राकृतिक कृषि को अपनाते हुए अतिरिक्त आय के द्वार खोले। कृषि विभाग और मध्यप्रदेश शासन के माध्यम से ऐसा अभियान चलाने वाले तथा कृषि वानिकी को अपनाने वाले किसानों को आवश्यकतानुसार पूरा सहयोग प्रदाय किया जाएगा। विश्व पर्यावरण दिवस पर सभी किसान भाईयों, पर्यावरण हितैषियों को हार्दिक शुभकामनाएं।
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