नई दिल्ली
पाकिस्तान पिछले दो सालों से आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. अप्रैल 2022 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास मत से सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में जारी आर्थिक और राजनीतिक संकट का एक मुख्य कारण यह भी है. उसके बाद पिछले महीने मई 2023 में भ्रष्टाचार के आरोप में इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और चरम पर पहुंच गई है. इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में आगजनी और हिंसा देखने को मिली.
आर्थिक संकट के बाद अब पाकिस्तान का राजनीतिक संकट उसके सहयोगी देश खासकर संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब के लिए चिंता पैदा कर दी है क्योंकि वर्तमान राजनीतिक संकट के कारण पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी लगातार खराब होती जा रही है. इससे पहले पाकिस्तान के सहयोगी देशों ने गंभीर आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान को इस शर्त पर वित्तीय सहायता देने का वादा किया था कि पाकिस्तान जल्द से जल्द अपने राजनीतिक संकट को हल करेगा.
देश में जारी राजनीतिक अराजकता के बीच पाकिस्तान में महंगाई दर रिकॉर्ड 36 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. पिछले एक साल में ही पाकिस्तानी रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आधी हो गई है. पाकिस्तान सरकार के सामने एक गंभीर समस्या भी है कि पाकिस्तान पर बाहरी कर्ज भी बहुत ज्यादा है.
कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान
दिसंबर 2022 में पाकिस्तान के ऊपर कुल 126 बिलियन डॉलर का कर्ज था. लेकिन उच्च ब्याज दर और स्ट्रॉन्ग ग्रीनबैक के कारण पाकिस्तान के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी न्यूनतम स्तर पर है. ऐसे में पाकिस्तान के ऊपर डिफॉल्ट होने का खतरा भी मंडरा रहा है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुताबिक, मार्च 2023 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 4.2 अरब डॉलर रह गया है.
डिफॉल्ट होने से बचने के लिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बेलआउट पैकेज के लिए बातचीत कर रहा है. साल 2019 में पाकिस्तान और IMF के बीच 6 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज पर समझौता हुआ था. लगभग एक साल बाद पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर देने पर सहमति बनी. लेकिन IMF ने यह बेलआउट पैकेज तब तक जारी करने से इनकार कर दिया जब तक कि IMF को यह गारंटी नहीं मिल जाती है कि पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय सहयोगी देश संयुक्त अरब आमीरात, सऊदी अरब और चीन भी आर्थिक रूप से मदद करेंगे.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
कराची स्थित ब्रोकरेज हाउस टॉपलाइन सिक्योरिटीज के सीईओ मोहम्मद सोहेल ने अंग्रेजी वेबसाइट से बात करते हुए कहा कि IMF की यह मांग एक लोन प्रोसेस का एक पार्ट है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या यूएई और सऊदी अरब या कोई अन्य सहयोगी देश पाकिस्तान में बढ़ते राजनीतिक संकट को देखते हुए मदद को आगे बढ़ने के लिए तैयार होगा?
उन्होंने आगे कहा, "नॉर्मल प्रैक्टिस के अनुसार, IMF लोन लेने वाले देश को अपनी फंडिंग योजनाओं को साझा करने के लिए कहता है. इससे IMF यह आंकता है कि उस देश को कितना कर्ज दिया जा सकता है. हालांकि, वर्तमान राजनीतिक संकट से पहले ही चीन, यूएई और सऊदी अरब IMF के सामने पाकिस्तान को लोन देने के लिए अपना समर्थन दे चुके हैं लेकिन पाकिस्तान को अभी भी लगभग 2 अरब डॉलर के लिए सहयोगी देशों की मदद की जरूरत है.
इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक मैक्रो इकोनॉमिक इनसाइट्स के सीईओ साकिब शेरानी ने भी कहा कि पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान लगातार बाहरी फंडिग हासिल करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन सरकार को IMF से किए गए वादों को पूरा करने और मुख्यतः यूएई और चीन से फंडिग हासिल करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. इसी कारण से पाकिस्तान को मिलने वाला आईएमएफ बेलआउट पैकेज महीनों से रुका है.
साकिब शेरानी ने आगे कहा कि ऐसी संभावना है कि पाकिस्तान में जारी राजनीतिक अस्थिरता और डिफॉल्ट होने के मंडराते खतरे के कारण सहयोगी देश पाकिस्तान के साथ प्रतिबद्धता व्यक्त करने से हिचक रहे हैं.
यूएई और सऊदी अरब के लिए क्या है खतरा?
वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के बीच अगर यूएई और सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देता है, तो यह जोखिमों से भरा होगा. दोनों देशों के पाकिस्तान के साथ मजबूत व्यावसायिक रिश्ते हैं.
लगभग 20 करोड़ से अधिक आबादी वाला पाकिस्तान सऊदी अरब और यूएई दोनों देशों के लिए एक बड़ा बाजार है. साल 2023 में पाकिस्तान के साथ यूएई का ट्रेड लगभग 10.6 बिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है. 2022 में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच भी द्विपक्षीय व्यापार लगभग 4.6 बिलियन डॉलर का रहा.
इसके अलावा पाकिस्तान के आर्थिक संकट से पाकिस्तान-गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल ट्रेड डील की व्यावहारिकता पर भी सवाल उठ सकते हैं. पाकिस्तान और गल्फ देशों के बीच होने वाली इस डील को लेकर फिलहाल बातचीत जारी है.
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