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चीतों की मौत ने व्यवस्था पर खड़े किये सवाल

अब तक छह चीतों की हो चुकी है मौत

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भोपाल। टाइगर स्टेट के बाद चीता स्टेट का दर्जा दिलाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल मप्र में दम तोड़ने लगी है। इसकी वजह है कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गये चीतों की लगातार मौतें। एक के बाद एक मौतों के कारण जहां पूरी परियोजना संकट में आ गई है। वहीं दूसरी ओर वन विभाग द्वारा कूनो नेशनल पार्क में संचालित व्यवस्था भी कटघरे में खड़ी हो गई है।
क्योंकि गुरूवार को हुई दो शावकों की मौत के बाद मृत चीतों की संख्या का आंकड़ा छह तक पहुंच गया है। जबकि इसके पहले 23 मई को एक चीता शावक की मौत हो चुकी है। खास बात यह है कि करीब दो माह पहले 24 मार्च को ही ज्वाला नाम की मादा चीता ने 4 बच्चों को जन्म दिया था। इनमें 3 की मौत के बाद सिर्फ एक शेष रह गया है। इसकी भी हालत गंभीर बताई जा रही है। हालांकि यह मेडिकल टीम की निगरानी में है। बावजूद इसके जीवन पर भी संकट के बादल छाये हैं। बहरहाल कूनो में अब 18 चीते ही बचे हैं। जिनमें से मप्र की धरती पर जन्मा ज्वाला का यह शावक भी शामिल है।

इसलिये सवाल
कूनो नेशनल पार्क में 3 चीतों की मौत पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि राजनीति से ऊपर उठकर कूनो से कुछ चीतों को राजस्थान शिफ्ट करने पर विचार किया जाए। बावजूद इसके अब तक किसी प्रकार की पहल नहीं की गई। इतना ही नहीं चीतों के बीमार होने पर जब वह अत्यंत गंभीर हो जाते हैं तभी प्रबंधन की उन पर निगाह पड़ना भी लापरवाही की ओर इशारा करता है। क्योंकि इसके कारण पूरी निगरानी व्यवस्था सवालों के घेरे में खड़ी हो गई है। यह इसलिये भी चीतों की जिंदगी बचाना मुश्किल हो गया है।

तब के दावे अब तक पूरे नहीं
कूनो में चीतों को लाने से पहले निचले स्तर से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक बैठे विशेषज्ञों द्वारा अति सूक्ष्म स्तर तक निगरानी के दावे किए गए थे। परंतु यह अब तक पूरा नहीं हो पाया है। हालांकि वन्यप्राणी शाखा की सफाई यह है कि चीतों के हाव भाव समझने के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। बावजूद इसके यह तभी समझते हैं जबकि चीते अंतिम सांस ले रहे होते हैं।

इन लापरवाहियों से बढ़ा मौतों का सिलसिला

  • -27 मार्च को कूनो में सबसे पहले मादा चीता साशा की मौत हुई। उसकी किडनी में नामीबिया से ही संक्रमण की जानकारी दी गई परंतु पहले से संक्रमण के बावजूद उसके इलाज के क्या इंतजाम हुए, इस पर प्रंबधन ने चुप्पी साध ली। बीमार चीता क्यों लाया गया यह सवाल अभी तक मुंह बाये खड़ा है।
  • – 08 अप्रैल को चीता दक्षा की मौत बाड़े में एक साथ दो नर चीते छोड़े जाने की चूक की वजह से हुई। इसके बावजूद जनलेवा हमले की खबर प्रबंधन को तब लगी, जब उसके मादा चीता के पास चंद घंटे ही बचे थे। हमले के तत्काल बाद उसका इलाज नहीं हो पाया।
  • – 25 अप्रैल को चीता उदय की मौत हुई। उसे हार्ट अटैक आना बताया गया, परंतु पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में वजह संक्रमण निकला। लगातार निगरानी के दावे के बाद भी उदय पर नजर मौत से कुछ घंटे पहले ही पड़ी।
  • – 23 मई को चीता शावक की मौत के बाद बताया गया शावक जन्म से ही कमजोर था। दूध भी कम पी रहा था। जानकारी के अनुसार उसे बचाने के प्रयास तब हुए जब वह निढ़ाल हो कर गिर गया। इसके बाद निगरानी दल ने चिकित्सकों को जानकारी दी।
    -25 मई को वन विभाग के निगरानी दल की मौजूदगी में ही रेस्क्यू के दौरान दोनो शावकों की मौत हो गई। जबकि रेस्क्यू के पीछे उद्देश्य मेडिकल निगरानी का ही था।
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