बाल संरक्षण में बाधा बनी कर्मचारियों की कमी!
इसलिये सरकार से आईसीपीएस अमले की पैरवी करेगा राज्य बाल आयोग

भोपाल। एकीकृत बाल संरक्षण योजना ICPS में अमले की कमी बाल संरक्षण में बाधा बन रही है। यह स्थिति संविदा सेवा में अनिश्चितता व बीते 10 वर्षों से लगातार समाने आई प्रशासनिक उपेक्षा के चलते बनी है। लगातार कर्मचारियों के विभागीय सेवा छोड़ने से संरक्षित बच्चों की समुचित देखभाल प्रभावित हुई है। राज्य बाल संरक्षण आयोग ने इसको देखते हुए कर्मचारियों की पैरवी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से करने का फैसला किया हैं।
वजह यह भी है कि जरूरतमंद बच्चों के संरक्षण को लेकर संचालित केंद्र प्रवर्तित इस योजना के अधिकारी-कर्मचारी प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हो गये है। बीते दस वर्षों की सेवा अवधि के दौरान इनको विभाग द्वारा जहां नियमित सेवा देने की जरूरत नहीं समझी गई। वहीं दूसरी ओर विभागीय जिम्मेदारों ने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 90 प्रतिशत वेतनमान से भी लगातार वंचित किया गया है। लिहाजा सेवा अनिश्चिता और सौतेले व्यवहार से नाराज अधिकारी-कर्मचारी लगातार सेवाएं छोड़ रहे हैं। आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि शुरूआती दौर में नियुक्त करीब 600 कर्मचारियों का अमला घटकर 300 में सिमट गया है। इससे कार्यरत कर्मचारियों पर जहां काम का बोझ बढ़ा है। वहीं दूसरी ओर बच्चों के संरक्षण से जुड़ी सेवाएं भी प्रभावित हुई हैैै।
बाल आयोग करेगा सिफारिश
अधिकारी-कर्मचारियों की कमी के कारण योजना की बिगड़ती स्थिति को राज्य बाल आयोग ने संज्ञान लिया है। अध्यक्ष द्रविंद मोरे ने बताया कि वह इस मामले को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष न केवल रखेंगे बल्कि मौजूदा अमले को स्थायित्व देने की सिफारिश भी करेंगे। उनका कहना है कि जिलों में दौरों के दौरान परियोजना अधिकारी-कर्मचारियों की दयनीय स्थिति सामने आई है। जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मेदारों को इस मामले में संदेनशीलता दिखाने की जरूरत है।
अब तक नहीं मिला बढ़ा वेतनमान
केंद्र सरकार ने हाल ही में एकीकृत बाल संरक्षण योजना का नाम बदलकर मिशन वातसल्य कर कर दिया है। बावजूद इसके कर्मचारियों की सेवा अवधि के मुकाबले मामूली वेतन वृद्धि ही की गई है। इसके बाद भी केंद्र सरकार के निर्देशों के परिपालन में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा एरियर तो दूर अब तक इनको बढ़ा हुआ वेतनमान देने की जरूरत नहीं समझी गई है।
कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार
परियोजना के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा सेवाएं छोड़ने की वजह यह भी है कि इनके साथ लगातार सौतेला व्यवहार किया गया। क्योंकि दस वर्षों में समाजसेवा और राजनीतिक पृष्ठभूमि से जिला बाल संरक्षण समितियों में नियुक्त हुए सदस्यों का मानदेय जहां दस गुना बढ़ाया गया है। वही सरकार द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षा पास कर नियुक्त पाने वाले कर्मचारियों में शामिल आऊटरिच कार्यकर्ताओं को इस महंगाई में 8000 रुपये प्रतिमाह ही दिया जा रहा है।
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