हार्वर्ड के वैज्ञानिकों का रिसर्च- TV देखने से हो सकते हैं Sleep apnea का शिकार, जानें कितनी खतरनाक है ये बीमारी
टीवी मनोरंजन का सबसे बढ़िया साधन है। आप टीवी के जरिए देश और दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन टीवी देखने की भी एक लिमिट होती है। बहुत से लोग टीवी पर सिर्फ समाचार सुनते हैं या फिर हिस्ट्री और डिस्कवरी पर कुछ खास प्रोग्राम देखते हैं। ऐसे कार्यक्रम को आप 30 मिनट से लेकर 1 घंटे तक खत्म कर सकते हैं जिससे आपकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन अगर आप दिन में 4 घंटे से ज्यादा एक जगह पर बैठकर टीवी देखते हैं तो खर्राटे (Snoring) का शिकार हो सकते हैं।
जी हां, ये हम नहीं बल्कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों का कहना है। हाल ही में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (Harvard Medical School) के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च किया है जिसमें उन्होंने पाया कि जो लोग 4 घंटे से ज्यादा टीवी देखते हैं उन्हें खर्राटे की बीमारी हो सकती है।
लगातार TV देखने से हो जाता स्लीप एप्निया का रोग
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (Harvard Medical School) के शोधकर्ताओं ने अपने लेटेस्ट रिसर्च में 10 से 18 साल के 1,38,000 बच्चों को लिया। शोध में वैज्ञानिकों ने बच्चों की सेहत से लेकर इस पर भी नजर रखी कि वो दिन भर में कितना चलते-फिरते हैं और कितना वक्त टीवी के साथ बिताते हैं।
इस शोध में पता चला है कि एक ही जगह पर लगातार बैठे रहने से व्यक्ति ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (Obstructive sleep apnea) की चपेट में आ सकता है। इस वजह से खर्राटे शुरू होने का खतरा लगभग 78 फीसदी तक बढ़ जाता है।
एक जगह बैठकर लगातार काम करना भी है नुकसानदायक
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने स्टडी में ये भी दावा किया कि जो लोग दफ्तर में दिनभर बैठे काम करते हैं उनकी सेहत को भी नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे लोगों को काम करने के बाद अधिक देर तक एक्सरसाइज करनी चाहिए। क्योंकि लगातार एक जगह बैठने से वे भी स्लीप एप्निया का शिकार हो सकते हैं।
स्लीप एप्निया के कारण बढ़ सकता है इन बीमारियों का खतरा
विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में 30 से 69 साल की उम्र में 100 करोड़ लोग में स्लीप एप्निया विकार से जूझ रहे हैं। आपको बता दें कि जो लोग स्लीप एप्निया विकार की चपेट में आते हैं उनकी सांस नली रात में पूरी तरह से ब्लॉक हो जाती है।
ऐसे में उन्हें सामान्य तरीके से सांस लेना मुश्किल हो जाता है और इसी वजह से सांस फंस जाती है जो कि खर्राटों में बदल जाती है। अगर समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो कैंसर, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, ग्लूकोमा, स्ट्रोक और टाइप-2 डायबिटीज होने का जोखिम भी बढ़ सकता है।
स्लीप एप्निया के प्रकार
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया- ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) नामक रोग में सोते वक्त अक्सर सांस कुछ पलों के लिए रुक जाती है और फिर कुछ देर बाद शुरू हो जाती है। इस स्थिति में मासपेशियां आराम करने लगती हैं। अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि यह एक बीमारी है। इसमें नींद के दौरान प्रर्याप्त ऑक्सीजन शरीर में नहीं पहुंच पाता।
सेंट्रल स्लीप एपनिया- जो तब होता है जब आपका मस्तिष्क श्वास को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों को उचित संकेत नहीं भेजता है।
कॉम्प्लेक्स स्लीप एपनिया- इस सिंड्रोम, कॉम्प्लेक्स स्लीप एपनिया सिंड्रोम, को ट्रीटमेंट एमरजेंट सेंट्रल स्लीप एपनिया के रूप में भी जाना जाता है। ये रोग तब होता है जब किसी को ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया और सेंट्रल स्लीप एपनिया दोनों होते हैं।
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