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जान बचाने के लिए शहाबुद्दीन को बुर्का पहनकर भागना पड़ा था, जेल में लगाता था जनता दरबार

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पटना 
चाहे अपराध की दुनिया हो या राजनीतिक दमखम, दोनों ही जगहों पर मो. शहाबुद्दीन के आगे अच्छे-अच्छे पानी भरते नजर आते हैं। सीवान ही नहीं, पूरे बिहार में इस शख्स की कभी तूती बोलती थी। जेल में जनता दरबार लगाने के मामले में पिछले दिनों सुर्खियों में आए सैयद मोहम्मद शहाबुद्दीन को वर्ष 2001 में अपनी जान बचाने के लिए बुर्का पहनकर भागना पड़ा था। जानकार बताते हैं कि तब पुलिस अपने रंग में आ गई थी। शायद शहाबुद्दीन को इसका अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि पुलिस उसके खिलाफ ऐसा कोई ऑपरेशन भी कर सकती है।

 16 मार्च 2001 को प्रतापपुर में शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने बड़ी कार्रवाई की। घंटों चली मुठभेड़ में शहाबुद्दीन के 11 लोग मारे गए थे जबकि पुलिस का एक हवलदार शहीद हुआ था। बाद में तलाशी के दौरान प्रतापपुर स्थित घर से बड़ी संख्या में हथियारों का जखीरा बरामद हुआ। 80 के दशक के मध्य में अपराध की दुनिया में कदम रखनेवाले शहाबुद्दीन के खिलाफ पुलिस का यह सबसे बड़ा ऑपरेशन था। इसकी पृष्ठिभूमि किसी रिपोर्ट या बड़े हुक्मरान के आदेश पर नहीं लिखी गई थी। ‘ऑपरेशन प्रतापपुर’ उस ट्रेनी पुलिसकर्मी के अपमान का नतीजा था, जो शहाबुद्दीन पर कहर बनकर टूटा। मैट्रिक परीक्षा के एक सेंटर पर मामूली विवाद के बाद इस डीएसपी पर हाथ चलाया गया और उसके सीने पर हथियार रखकर धमकी दी गई थी। इसके बाद प्रक्षिणु डीएसपी ने पुलिस लाइन में बैठक की और पुलिसकर्मी आग-बबूले हो गए थे। उस वक्त एसपी रहे बच्चू सिंह मीणा ने पूरी कार्रवाई को लीड किया था। सूत्र बताते हैं कि ऑपरेशन के दौरान जब पुलिस प्रतापपुर गांव पहुंची तो उस पर गोलियों की बौछार शुरू हो गई थी। पीछे हटने की बजाए पुलिस ने एसटीएफ के साथ मोर्चा संभाला। ऑपरेशन के दौरान वरीय अधिकारी पीछे हटने का आदेश न दे सकें, इसके लिए तमाम वायरलेस सेट बंद कर दिए गए थे।

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