UAE के कानून बन रहे थे बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में रोड़ा, हिंदू पति और मुस्लिम महिला को अबू धाबी में ऐसे मिला न्याय
हैदराबाद
भारत से अबू धाबी पहुंचे एक दंपत्ति को जब एक बच्चा पैदा हुआ तो उन्हें लगा कि वे धरती पर सबसे भाग्यशाली माता-पिता हैं। लेकिन कुछ ही दिनों में उनके सामने ऐसी परेशानी खड़ी हो गई जिसका उनको तनिक भी अंदाजा नहीं था। यह कहानी है विशाखापट्टनम के 39 साल के रेगुलवलासला तिरुमाला कल्याण चक्रवर्ती और 35 साल की उनकी पत्नी जावरिया मसूद का। दंपत्ति को पिछले साल जनवरी में अबू धाबी में एक बच्चा हुआ। बच्चा पैदा होने के बाद परिवार में खुशी का माहौल था, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि खुशी के साथ-साथ उनकी परेशानी भी शुरू हो गई है। कुछ दिन बिता इसके बाद हर माता-पिता की तरह ये दोनों भी अपनी बेटी के लिए जन्म प्रमाण पत्र के लिए वहां के स्वास्थ्य विभाग में आवेदन किया और बेटी को सुहक्षिता नाम दिया। आवेदन को स्वास्थ्य विभाग ने खारिज कर दिया।
दरअसल, संयुक्त अरब अमीरात के कानून के अनुसार, एक नवजात बच्चे के लिए जन्म के चार महीने के भीतर वीजा जरूरी होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए दंपति ने स्वास्थ्य विभाग में बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने वहां के विवाह नियमों का हवाला देते हुए उसे खारिज कर दिया। जिसके बाद दंपत्ति के सामने अब एक नई मुश्किल खड़ी हो गई। चक्रवर्ती ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने मुझे बताया कि संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासियों के लिए शादी के नियमों के अनुसार एक मुस्लिम पुरुष एक गैर मुस्लिम महिला से शादी कर सकता है, लेकिन मुस्लिम महिला किसी गैर-मुस्लिम पुरुष से शादी नहीं कर सकती। इसलिए उनसे पैदा हुए बच्चे को कानून के अनुसार स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
विशाखापट्टनम में हिंदू परिवार में जन्मे, चक्रवर्ती साइंस से ग्रेजुएट हैं और उन्होंन जावरिया के सात प्रेम विवाह किया है जो कि अबू धाबी में ही फिजियोथेरेपी ग्रेजुएट हैं। उन्होंने कहा कि हमने 2008 में शादी की। 2011 में एक बेटा पैदा हुआ। कुछ साल तक निजी कंपनियों में काम करने के बाद हम 2018 में बेहतर जीवन जीव यापन के लिए अबू धाबी चले गए। उन्होंने कहा कि हमें यहां पर अच्छी नौकरी मिल गई और हम खुशहाल और आरामदायक जीवन जी रहे थे। इसके बाद साल 2019 में 28 जनवरी को एक बेटी पैदा हुई। दंपति ने बेटी के बर्थ सर्टिफिकेट के लिए यूएई के अधिकारियों के सामने गुहार भी लगाई और कहा कि उन्हें यहां के कानून के बारे में जानकारी नहीं थी। फिर भी अधिकारी मानने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद चक्रवर्ती ने भारती दूतावास से गुहार लगाई और फिर फरवरी के आखिरी सप्ताह में अबू धाबी न्यायिक विभाग में एक याचिका दायर की। इसके बाद कोरोना का प्रकोप आ गया। लॉकडाउन लग गया और यात्रा पर प्रतिबंध भी।
इस साल 2 फरवरी को आई कॉल
लगभग एक साल बीत जाने के बाद इस साल 2 फरवरी को चक्रवर्ती और जावरिया को न्यायिक विभाग से बेटी के साथ खुद को पेश होने का कॉल आया। इसके बाद मामले को सुना गया और फैसला दंपति के पक्ष में आया। चक्रवर्ती ने कहा कि फैसला सुनने के बाद आंखों में आंसू आ गए थे। फैसले के कुछ घंटे बाद कपल को स्वास्थ्य विभाग से एक कॉल और फिर उन्होंने सभी औपचारिकताओं को पूरा किया। चक्रवर्ती ने कहा कि 8 फरवरी को हमारी बेटी के लिए जन्म प्रमाणपत्र मिल गया।
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