नई दिल्ली
कोरोना के दोबारा संक्रमण के मामले दुनिया भर में आए हैं। इसे लेकर कई अध्ययन भी हुए हैं। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि एक फीसदी से भी कम लोगों को ही कोरोना के दोबारा संक्रमण का खतरा है। शोध में कहा गया है कि दोबारा संक्रमण की घटनाएं सीमित हैं। नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में छह हजार स्वास्थ्यकर्मियों पर यह शोध किया गया। ये लोग पहले कोरोना से संक्रमित हो चुके थे। इनमें से 44 लोगों को दोबारा संक्रमण हुआ। इस प्रकार वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि संक्रमण की दर एक फीसदी से भी कम करीब 0.7 फीसदी के करीब है। जिन लोगों पर यह अध्ययन किया गया, वे सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता थे। यानी वे उच्च जोखिम समूह में आते हैं। इसलिए सामान्य नागरिकों में यह दर और भी कम रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों में दोबारा कोरोना का संक्रमण हुआ, उनमें वायरस लोड ज्यादा पाया गया। यानी उनके नाक और गले में वायरस की ज्यादा मात्रा पाई गई। यह पहली बार के संक्रमण की तुलना में काफी ज्यादा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादा वायरल लोड होना बीमारी की भयावहता को दर्शाता है। दरअसल, कोरोना को लेकर आज भी कई रहस्य बरकरार हैं। दोबारा संक्रमण के मामलों में भले ही वायरस का लोड ज्यादा पाया गया हो, लेकिन दोबारा संक्रमित होने वाले महज 30 फीसदी रोगियों में ही बीमारी के लक्षण दिखे। जबकि इसी अध्ययन में पहली बार संक्रमित हुए लोगों में 78 फीसदी ऐसे थे, जिनमें बीमारी के लक्षण दिखे। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अध्ययन के आधार पर यह कहना मुश्किल है कि क्या दोबारा हुआ संक्रमण ज्यादा गंभीर है या नहीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादा वायरल लोड के बावजूद दोबारा संक्रमितों में से 70 फीसदी में बीमारी के कोई लक्षण नहीं थे। ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं। इसलिए यह नतीजा निकालना मुश्किल है कि दोबारा संक्रमण ज्यादा घातक है या नहीं। अध्ययन में कहा गया है कि जो लोग संक्रमित हो चुके हैं, उन्हें हर चार सप्ताह में एक बार एंटीबॉडीज टेस्ट कराना चाहिए। इससे संक्रमण के दोबारा खतरे का आकलन करना संभव हो सकेगा।
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