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सच्ची दोस्ती में ऊंच-नीच का भेद नहीं होता – आचार्य नंदकुमार चौबे

रायपुर
मित्र यदि मुसीबत में हो, तो उसकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस बात का इंतजार न करें कि मित्र आपसे मदद मांगे, तभी आप सहायता करेंगे। सच्चा मित्र वही होता है, जो मदद करके उसका बखान नहीं करता। मित्र की मदद करें, तो उसे पता भी न चलने दें कि मदद किसने की है। यही मित्र के प्रति सच्चा प्रेम है। यह संदेश दूधाधारी मठ में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य नंद कुमार चौबे ने दिया।

मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण श्रद्धालुओं को समझाते हुए आचार्य ने बताया कि श्रीकृष्ण और सुदामा का प्रेम, सच्चा मित्र प्रेम है। सच्चे प्रेम में ऊंच या नीच नहीं देखी जाती और न ही अमीरी-गरीबी देखी जाती है। इसीलिए आज इतने युगों के बाद भी दुनिया कृष्ण और सुदामा की मित्रता को सच्चे मित्र प्रेम के प्रतीक के रूप में याद करती है। चौबे ने कहा कि समस्त वेद पुराणों का निचोड़ है भागवत महापुराण। इसका भी सार है खुद को भगवान को सौंप देना। भगवान, भक्त को प्रत्येक परिस्थिति में कैसे भी रखे वह हमेशा संतुष्ट रहता है। यह भक्त की पहचान है।

आचार्य चौबे ने श्रीकृष्ण के 16 हजार विवाह प्रसंग में बताया कि नरकासुर नाम के राक्षस ने अमरत्व पाने के लिए 16 हजार कन्याओं की बलि देने के लिए कैद किया था। जब भगवान को इस बात का पता चला, तो वह राक्षस की नगरी जा पहुंचे और सभी कन्याओं को छुड़ाया। कन्याओं ने कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा इसलिये वे जीना नहीं चाहती। तब समाज में उन कन्याओं को मान सम्मान दिलाने भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह रचाया। भगवान कृष्ण ने जिस दिन पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का संहार कर 16 हजार लड़कियों को कैद से आजाद करवाया था, उस दिन की याद में दिवाली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

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