उत्तर प्रदेश

दलित समुदाय को साधने के लिए सपा ने प्रमोशन में आरक्षण पर यूटर्न लिया

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नई दिल्ली 

उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहते हुए समाजवादी पार्टी हमेशा प्रमोशन में आरक्षण का विरोध करती रही है. मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक मुख्यमंत्री रहते हुए इसके खिलाफ खड़े रहे और सपा संसद से सड़क तक इसके विरोध में आवाज उठाती रही. वक्त और सियासत ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि अब उसी प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे को अमलीजामा पहनाने का वादा कर रहे हैं. माना जा रहा है कि दलित समुदाय को साधने के लिए सपा ने प्रमोशन में आरक्षण पर यूटर्न लिया है. 

दरअसल, आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने राजनीतिक दलों से मिलकर पदोन्नति में आरक्षण देने की व्यवस्था को लागू करने का अभियान शुरू किया है. इसी कड़ी में संघर्ष समिति के संयोजक अवधेश वर्मा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सोमवार को मुलाकात कर पदोन्नति में आरक्षण बिल को संसद में पास कराने और पिछड़े वर्गों को भी पदोन्नति में आरक्षण देने की व्यवस्था लागू कराने में मदद करने की मांग की. इस पर अखिलेश ने भी आश्वासन दिया है कि सपा की सरकार बनने पर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने के साथ ही रिवर्ट किए गए दलित व पिछड़े वर्ग के कर्मियों को दोबारा प्रमोशन दिया जाएगा. 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने प्रमोशन में आरक्षण लागू किया था, लेकिन 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था. इसके बावजूद यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती दलित समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण देती रही. हालांकि, उत्तर प्रदेश में सत्ता में अखिलेश यादव के आने के बाद करीब 2 लाख दलित कार्मिकों को रिवर्ट किया गया था, जिन्हें  मायावती ने प्रमोशन दिया था. अखिलेश सरकार ने आधिकारिक आदेश के जरिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मियों के लिए पदोन्नति को समाप्त कर दिया था, जिसका जमकर विरोध हुआ था. इस मामले को कोर्ट ने संज्ञान लिया था.

प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर हाईकोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अनुसूचित जाति-जनजाति के (SC/ST) कर्मचारियों से संबंधित प्रमोशन में आरक्षण मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया था और कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है और साफ कहा कि केंद्र या राज्य सरकार इस पर फैसला ले सकती है. इसी को लेकर आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने आंदोलन शुरू किया है, जिसके तहत देश के सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्ष के साथ मुलाकात कर समर्थन मांग रहे हैं. 

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