नैनीताल
बीते कई दिनों से चर्चित रहा विशालकाय ‘2008 जीओ 20’ एस्टेरॉयड पृथ्वी से सुरक्षित दूरी से गुजर गया। हालांकि दूरी बहुत ज्यादा होने से लोगों के लिए इसका दीदार कर पाना संभव नहीं था लेकिन अंतरिक्ष की घटनाओं में रुचि रखने वालों के लिए अब 28 जुलाई की रात एक दुर्लभ, अनोखी और आकर्षक घटना होने जा रही है, जिसे आकाश में नंगी आंखों से भी देखा जा सकेगा। इस रात एक नहीं बल्कि दो-दो उल्का बौछारें (मीटियर शावर) एक साथ अपने चरम पर पहुंच कर आकाश को रोशन करेंगी।
दक्षिणी डेल्टा एक्वेरिड्स और अल्फा कैप्रिकॉर्न्स दोनों उल्कापात आजकल सक्रिय हैं। जब कभी भी दो उल्कापात एक समय में सक्रिय होते हैं तो उनके पीक पर पहुंचने की तिथियों में कई दिन का अंतर रहता है, लेकिन इस बार दो अलग-अलग उल्कापात एक ही तारीख में अपने पीक पर पहुंचेंगे।
हालांकि इस रात चंद्रमा लगभग 75 प्रतिशत की चमक लिए होगा, जिससे इन उल्कापातों की चमक थोड़ी बाधित हो सकती है। फिर भी यदि आकाश साफ रहा तो यह नजारा बहुत ही दर्शनीय होने वाला है। खास बात यह है कि वर्ष का सर्वाधिक आकर्षक माना जाने वाला परसीड उल्कापात भी 17 जुलाई से शुरू हो चुका है।
आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने बताया कि यह 26 अगस्त तक चलेगा और 11 अगस्त की रात्रि अपने चरम पर होगा। उन दिनों चंद्रमा का आकार छोटा व चमक कम होने से यह और भी बेहतर नजर आएगा।
उल्काएं अंतरिक्ष की छोटी चट्टान के टुकड़े होते हैं। ये उल्कापिंड जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो हवा के घर्षण से अत्यधिक गर्म होकर जलने लगते हैं। पृथ्वी से ये शूटिंग स्टार या टूटते तारे के रूप में नजर आते हैं। जब पृथ्वी पर एकसाथ कई उल्कापिंड गिरते हैं तो ये उल्काएं बौछार की तरह नजर आते हैं। उल्का वर्षा तब होती है जब पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमते हुए धूमकेतुओं के विघटन से बचे मलबे के बीच से गुजरती है। इसी मलबे के कणों के पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने और जलने पर उल्काओं की बौछार होती है।
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