मध्य प्रदेश

लिलजी बांध: खनन योग्य जमीन बांटने के लिए पर्यावरणीय संभावनाओं/आशंकाओं की अनदेखी

सतना
सतना जिले में 82 साल पहले बनाए गए लिलजी बांध की जमीन को राजस्व विभाग उन लोगों को देने की तैयारी में है जिन्होंने इसकी जमीन पर कब्जा कर रखा है।   इस बांध की जमीन में ए ग्रेड का लाइम स्टोन मौजूद है। आशंका है कि जमीन निजी हाथों में आने के बाद इसका बिकना तय है। गौरतलब है कि 1938 में बने इस बांध से सैकड़ों गांवों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया होता था। यहां बांध का होना जैव पारिस्थितिकी के लिए भी जरूरी है। बांध  के पुनर्जीवन से क्षेत्रीय  पर्यावरणीय संतुलन और बेहतर होने की असीम संभावनाएं हैं।

विन्ध्य के सबसे बड़े बांधों में शामिल रहे लिलजी बांध को खत्म करने की तैयारी है। इस बांध की ढाई हजार एकड़ से अधिक जमीन ऐसे लोगों को मिलने वाली है जो कभी उसके मालिक नहीं रहे। राजस्व विभाग इसको लेकर 1055 हेक्टेयर में फैले बांध को पट्टे पर देने को सहमत हो गया है। इसके बाद 1499 लोगों को जमीन का मालिकाना हक दिया जा सकता है। इस बांध के दायरे में ए ग्रेड का लाइम स्टोन मिलने की स्थिति को देखते हुए राजनीतिक दलों ने भी इसका विरोध नहीं किया है। सतना के एक तत्कालीन कलेक्टर ने तो यहां लाइम स्टोन खनन के लिए लीज भी जारी कर दी थी जिसे बाद में विरोध के चलते निरस्त करना पड़ा था। इसके बाद के कलेक्टरों ने इस पर अब तक सहमति नहीं दी है।

प्रदेश में रियासत काल में वर्ष 1938 से सतना जिले के सीमावर्ती गांव बेला से सटे इलाके में लिलजी बांध बना है। यह बांध इतना विशाल था कि इसमें पानी भरने पर आस-पास के सैकड़ों गांव सिंचित होते थे। राजस्व विभाग के अफसरों के मुताबिक इस बांध की जमीन पर काबिज लोगों के बारे में सरकार को यह नहीं मालूम है कि जब बांध बना तो उनसे यह जमीन ली गई है या नहीं ली गई। इसका कोई रिकार्ड शासन और सतना कलेक्टर के पास मौजूद नहीं है।

सूत्रों के अनुसार सरकार को यह भी नहीं पता है कि जब यह बांध बना था तो जिनकी भूमि इसके दायरे में आई है, उन्हें कोई मुआवजा भी दिया गया था या नहीं दिया गया था। इन सबके बीच चूंकि सरकार ने ऐसे प्रावधान कर दिए हैं कि  सरकारी जमीन पर काबिज लोगों को भूमि का मालिकाना हक दिया जा सकता है। इसलिए अब इसके लिए राजस्व विभाग की फाइल अंतिम दौर में है। तीन साल से यह चल रही इस प्रक्रिया के पीछे यह बात भी सामने आ रही है कि हजारों लोगों को इसका मालिकाना हक दिलाकर सत्ता पक्ष के नेता अपनी ताकत मजबूत करना चाहते हैं।

अ्रफसरों के मुताबिक इसको लेकर सतना के तत्कालीन कलेक्टर एक बार प्रस्ताव शासन को भेज चुके हैं कि लिलजी बांध की जमीन के मालिकाना हक देने की कार्यवाही की जाए लेकिन तब भूमि प्रतिस्थापन व पुनर्वासन अधिनियम लागू नहीं हुआ था। चूंकि इसमें मालिकाना हक हस्तांतरित करने का अधिकार कलेक्टर को है। इसलिए एक बार फिर शासन प्रस्ताव कलेक्टर से मंगाने के बाद इस मामले में अंतिम आदेश जारी करने की तैयारी में है।

राजनीतिक दबाव के चलते सरकार ने अब इस भूमि को उन लोगों को देने की तैयारी कर ली है जिन्होंने अलग-अलग अंतराल में इसकी भूमि पर कब्जा किया है। बताया गया कि जिनके कब्जे हैं, उन्हें 80 साल से कब्जादार बताया जा रहा है और वर्ष 2013 के भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार नियम के आधार पर जमीन का मालिकाना हक देने की तैयारी की जा रही है।

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