मोदी सरकार की आर्थिक मोर्चे पर सबसे खराब रेटिंग, बजट से पहले जानिए भारतीयों की सबसे बड़ी समस्या
नई दिल्ली
आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को सत्ता में आने के बाद से अब तक की सबसे खराब रेटिंग मिली है। आईएएनएस-सीवोटर बजट ट्रैकर के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। वहीं महंगाई की वजह से ज्यादातर भारतीयों को अपने खर्च प्रबंधन में भी मुश्किल हो रही है। साल 2020 को लेकर किए गए इस सर्वे में 46.4 फीसदी लोगों ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के तहत केंद्र सरकार का अब तक का आर्थिक मोर्चे पर प्रदर्शन उम्मीद से खराब रहा है। वहीं करीब 31.7 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर है। यह 2010 के बाद से किसी भी सरकार के लिए सबसे खराब स्कोर है। हालांकि इस मामले में 2013 का वर्ष अपवाद है, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और पी. चिदंबरम वित्तमंत्री थे। 2013 में, 60 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा था कि आर्थिक मोर्चे पर काम उम्मीद से ज्यादा खराब है। मोदी सरकार की सर्वश्रेष्ठ आर्थिक अप्रूवल रेटिंग 2017 में तब आई थी, जब अरुण जेटली वित्तमंत्री थे। उस साल, 52.6 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि आर्थिक मामले में प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर है। आर्थिक मोर्चे पर घटती अप्रूवल रेटिंग चिंता का विषय है, क्योंकि अर्थव्यवस्था कोविड के प्रभाव के बाद फिर से अपने पुराने रूप में लौटने के लिए संघर्ष कर रही है।
'अधिकांश भारतीयों को अपने खर्च प्रबंधन में हो रही मुश्किल'
अधिकांश भारतीयों को अपने खर्चों का प्रबंधन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आईएएनएस-सी वोटर सर्वेक्षण में यह बात सामने आई। सर्वेक्षण में लगभग 65.8 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वर्तमान खर्चों को प्रबंधन करना मुश्किल हो गया है, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि खर्च तो बढ़ गए हैं, लेकिन वे प्रबंधन योग्य हैं। 2.1 प्रतिशत ने कहा कि पिछले एक साल में उनके खर्च में कमी आई है और अन्य 2.1 प्रतिशत मामले पर प्रतिक्रिया नहीं दे सके।
'2020 में अधिकांश भारतीयों की क्रयशक्ति कमजोर हुई'
सर्वे के अनुसार पिछले एक साल में अधिकांश भारतीयों की क्रय शक्ति कमजोर हो गई। आईएएनएस-सी वोटर के प्री-बजट सर्वेक्षण से पता चला है कि 43.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनकी आय उसी तरह बनी रही, जबकि खर्च बढ़ गया, जबकि 28.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं की आय गिर गई, लेकिन उनका खर्च बढ़ गया। लगभग 11.5 प्रतिशत ने कहा कि पिछले साल उनकी आय और व्यय दोनों में वृद्धि हुई है।
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महामारी की वजह से वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी श्रेणी के आम आदमी की आय बुरी तरह प्रभावित हुई है। इस दौरान आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई और व्यवसाय पर बुरा असर पड़ा। क्षेत्रों में कई कंपनियों और प्रतिष्ठानों ने महामारी और अंतत: लॉकडाउन के कारण वेतन में कटौती और छंटनी का सहारा लिया। आम आदमी के लिए महंगाई पिछले साल एक प्रमुख चिंता का विषय रही, क्योंकि पिछले एक साल में 70 प्रतिशत से अधिक लोगों ने उच्च कमोडिटी की बढ़ी हुई कीमतों के प्रभाव को महसूस किया।
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