नई दिल्ली
जोश हैजलवुड के 22वें ओवर की अंतिम गेंद जब बाउंड्री के पार पहुंची, तो यह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा सीरीज का अंत ही नहीं था, भारतीय क्रिकेट के लिए एक नए युग की शुरुआत भी थी। सीरीज के इस आखिरी टेस्ट मैच में कुल 139 चौके लगे, लेकिन यह आखिरी चौका ऑस्ट्रेलिया का गुरूर तोड़ने का सबसे बड़ा स्टेटमेंट था। जिस मैदान पर ऑस्ट्रेलिया पिछले 33 सालों में एक भी मुकाबला नहीं हारा, उसी मैदान पर टीम इंडिया के नौसिखुओं ने उसे पटकनी दे दी। सीरीज का स्कोरलाइन भले ही 2-1 रहा, लेकिन यह जीत इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि टीम इंडिया में करीब आधे खिलाड़ी ऐसे थे जिन्होंने शायद खुद भी सीरीज शुरू होने से पहले टीम में जगह मिलने की उम्मीद नहीं की हो। लेकिन मंगलवार को इन्हीं युवा तुर्कों ने ऑस्ट्रेलिया को पानी पिला दिया। इस जीत का नायक किसी एक खिलाड़ी को नहीं माना जा सकता, क्योंकि जिसे जब मौका मिला, उसने तभी अपनी अहमियत साबित कर दी। सीरीज के पहले मैच में शुबमन गिल प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं थे, लेकिन आखिरी मैच के खत्म होते-होते वे भारतीय टीम के लिए सीरीज में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बन गए। चौथे टेस्ट के पांचवें दिन जब रोहित शर्मा जल्दी आउट हो गए तो एक बार तो यही लगा कि दबाव में कहीं बल्लेबाजी ढह न जाए। गिल ने पुजारा के साथ ने केवल पारी को संभाला, बल्कि लगातार अपने स्ट्रोक्स खेलते रहे। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को बता दिया कि वे मैच बचाने के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए खेल रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में 5 विकेट लेने वाले मोहम्मद सिराज भी पहले मैच में प्लेइंग इलेवन में शामिल नहीं थे, लेकिन वे सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज बन कर उभरे। टेस्ट क्रिकेट में उनका सफर भले आंसुओं के साथ शुरू हुआ, लेकिन अंतिम तीन टेस्ट मैचों में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को खून के आंसू पिला दिए। तीसरी पारी में सिराज के 5 विकेट भी शायद भारत को मैच जिता नहीं पाते यदि इससे पहले वाशिंगटन सुंदर और शार्दुल ठाकुर ने लड़ने का जज्बा नहीं दिखाया होता। ऑस्ट्रेलिया के 339 के जवाब में 186 रन पर 5 विकेट खो चुकी भारतीय टीम हार की ओर बढ़ती दिख रही थी, लेकिन सुंदर और शार्दुल के जज्बे ने मुकाबले में केवल टीम इंडिया की वापसी ही नहीं कराई, बल्कि उसे जीत की राह पर लेकर आ गए। अपना पहला टेस्ट खेल रहे सुंदर की बल्लेबाजी का अंदाज ऐसा था मानो वे 20-25 मुकाबलों का अनुभव लेकर मैदान पर उतरे हों। शार्दुल ठाकुर तो टीम में जसप्रीत बुमराह की जगह आए और अपनी फाइटिंग स्पिरिट से विराट कोहली की कमी पूरी करते नजर आए। और अंत में, बात फिर सीरीज की आखिरी गेंद की। गेंद के बाउंड्री पार करते ही सबसे पहले और सबसे ऊंची छलांग पृथ्वी शॉ ने लगाई जो इस मैच में प्लेइंग इलेवन का हिस्सा भी नहीं थे। उनके पीछे कुलदीप यादव थे जो पूरी सीरीज में एक भी मुकाबला नहीं खेले। टीम इंडिया की इस जीत का यही निचोड़ है। इस जीत के लिए टीम में शामिल खिलाड़ियों ने तो अपनी क्षमता से बढ़कर प्रदर्शन किया ही, इसमें उनकी भी अहम भूमिका रही जो टीम क्या ऑस्ट्रेलिया में भी मौजूद नहीं थे। शायद यही कारण है कि मैच खत्म होने के बाद टीम के कोच रवि शास्त्री एक ओर तो इसे भारतीय टीम की सबसे महान जीत बता रहे थे तो दूसरी ओर टीम के नियमित कप्तान विराट कोहली को भी याद कर रहे थे।
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