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जातीय समीकरण साधने में लगे दावेदार, विकास दुबे के गांव में चल रही ग्राम प्रधान चुनाव की तैयारी

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 कानपुर 
लंबे वक्त बाद यह पहला मौका है जब पंचायत चुनाव में हर कोई अपने अरमान पूरा करना चाहेगा। इसलिए बिकरू में इस बार का पंचायत चुनाव अलग होगा। कुख्यात विकास दुबे की मौत के बाद बिकरू खुली हवा में सांस लेने लगा।उन सभी के मन में प्रधान बनने की इच्छा कुलाचें मारने लगी हैं जो कभी हिम्मत तक नहीं जुटा पाते थे। चौपालों पर शह मात का खेल शुरू हो गया है। सभी अपने-अपने हिसाब से तैयारी कर रहे हैं। ग्राम पंचायत का आरक्षण जारी होने के बाद कई नए चेहरे मैदान में होंगे। 

एक पूर्व प्रधान के भतीजे ने तो गांव में पोस्टर-बैनर भी लगवा दिए हैं।विकास दुबे ने 1995 में बिकरू गांव की प्रधानी सम्भाली थी। उससे पहले 1985 से 1995 तक राम सिंह यादव प्रधान थे। 95 में विकास दुबे ने चुनाव के दौरान राम सिंह यादव के साथ हाथापाई की थी। फिर प्रधानी का चुनाव जीत लिया था। 1995 से 2015 तक बिकरू की प्रधानी विकास दुबे के ही कब्जे में रही। सीट सामान्य हुई तो उसके घर के लोग प्रधान बने और आरक्षित हुई तो उसने जिसे चाहा उसे प्रधान बनवा दिया। 

अब उसके न रहने पर पूर्व प्रधान राम सिंह यादव के भतीजे प्रभात सिंह यादव ने तैयारी शुरू कर दी है। प्रभात ने गांव में बैनर-पोस्टर भी लगा दिए हैं। 1995 के बाद ही पंचायत चुनाव में विकास दुबे का दबदबा बन गया था। राम सिंह को चुनाव में शिकस्त दी तो दोबारा किसी को मौका नहीं मिला। विकास का इतना वर्चस्व था कि चुनावी मैदान में डमी कंडीडेट ही उतरे। 2010 में पूर्व प्रधान राम सिंह मैदान उतरे पर चुनाव नहीं जीत सके। उस दौरान विकास समर्थित प्रत्याशी रजनी कुशवाहा जीत गई थी।1954 से 1975 तक अटल बिहारी पाण्डेय प्रधान रहे। अब उनके बेटे सुशील पाण्डेय भी चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने अभी बैनर-पोस्टर नहीं लगवाए हैं। 1975 से 1985 तक लालाराम प्रधान रहे थे। उनके घर के लोग भी इस बार तैयारी करने का मन बना चुके हैं।

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