नई दिल्ली
यूरोपियन यूनियन (ईयू) डॉलर पर अपनी निर्भरता घटाने की रणनीति बना रहा है। इस बारे में तैयार किए गए दस्तावेज इसी हफ्ते जारी होने की संभावना है। इस दस्तावेज के बारे में जानकारी मशहूर ब्रिटिश अखबार 'द फाइनेंशियल टाइम्स' ने छापी है।
ईयू का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिका ने जिस तरह एकतरफा ढंग से प्रतिबंध लगाए, उससे यूरोपीय देशों को बहुत नुकसान हुआ। ये दस्तावेज ठीक उसी समय जारी होने की संभावना है, जब अमेरिका में जो बाइडेन राष्ट्रपति पद संभालेंगे।
फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक इस दस्तावेज में उस समय का जिक्र है, जब ट्रंप प्रशासन ने एकतरफा ढंग से ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए। ईयू का मानना है कि इससे उसे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। दस्तावेज में कहा गया है कि अब जरूरत इस बात की है कि ईयू ऐसे हालात से बचाव के लिए एहतियाती इंतजाम करे। इसमें कहा गया है- ‘ट्रंप के कार्यकाल ने हमारी कमजोरियों को सामने ला दिया। अब जरूरत इसका समाधान ढूंढने की है, भले ट्रंप राष्ट्रपति पद पर ना रहें।’
दस्तावेज में कहा गया है कि प्रस्तावित उपायों का संबंध दुनिया में ईयू की हैसियत से है- इसका संबंध ईयू के अपने आकार के मुताबिक आर्थिक एवं वित्तीय शक्ति कायम रखने के उपायों से है। दस्तावेज में चेतावनी दी गई है कि वित्तीय तनाव और स्थिरता संबंधी जोखिम के लिहाज से वैश्विक बाजार डॉलर पर अत्यधिक निर्भर है।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने के बाद ईयू और ईरान के बीच कारोबार संबंधी भुगतान के लिए ईयू को विशेष इंतजाम करने पड़े थे। तभी से ईयू के भीतर डॉलर पर निर्भरता घटाने की सोच शुरू हुई थी। अब उस दिशा में ठोस कदम आगे बढ़ाया जा रहा है। तैयार दस्तावेज में वित्त सहित तमाम सेक्टर्स में आत्म-निर्भरता को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक ये दस्तावेज मंगलवार को यूरोपीय आयोग के सामने पेश किया जाएगा। उसके एक दिन बाद ही बुधवार को जो बाइडेन का शपथ ग्रहण है। दस्तावेज में कारोबार संबंधी रणनीतिक स्वायत्ता के दूसरे उपाय भी शामिल किए गए हैं। कहा गया है कि यूरोपीय कंपनियों की खरीदारी के मामलों की विस्तार से जांच की जानी चाहिए। इस दौरान यह देखा जाना चाहिए कि क्या कंपनी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बाद कंपनी का संचालन भी विदेश में चला जाएगा। ईयू के अधिकारियों का मानना है कि ईयू वित्तीय संकट की स्थितियों में गैर-ईयू क्षेत्र के निवेश पर लगातार अधिक निर्भर होता गया है।
ईयू की ये नई पहल इस बात का संकेत है कि ट्रंप के दौर में अमेरिका के वैश्विक वर्चस्व को दूरगामी नुकसान पहुंचा। पिछले महीने रूस के सेंट्रल बैंक ने कहा था कि अमेरिका के प्रतिबंध के कारण डॉलर को भारी नुकसान हो सकता है। बैंक ने कहा था कि अपने मकसद पाने के लिए लगातार प्रतिबंधों के रास्ते पर चलने की अमेरिका की नीति से बचत और भुगतान के माध्यम के रूप में डॉलर की विश्वसनीयता में गहरी सेंध लगी है।
अब बहुत से देश दूसरे देशों से लेन-देन अपनी मुद्रा के आदान-प्रदान के जरिए कर रहे हैं। इस बैंक की तरफ से जारी एक परिपत्र में ध्यान दिलाया गया था कि हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर का उपयोग लगातार घटा है।
पिछले नवंबर में ये खबर आई थी कि पिछले आठ वर्षों में वैश्विक लेन-देन में ऐसा पहली बार हुआ, जब डॉलर से ज्यादा यूरो का इस्तेमाल किया गया। अक्टूबर 2020 में ऐसा हुआ। ये आंकड़ा सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकॉम्युनिकेशन्स (स्विफ्ट) ने जारी किया था। स्विफ्ट के मुताबिक ऐसा पिछली बार 2013 में हुआ था। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय भुगतान के पूरे तंत्र का संचालन स्विफ्ट के पास ही है। इस मंच के जरिए 200 देशों के 11 हजार वित्तीय संस्थान आपस में लेन-देन करते हैं।
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