मध्य प्रदेश

“भविष्योन्मुखी, टिकाऊ, पर्यावरण अनुरूप अधो-संरचना विकास” पर थिंक-20 के प्लेनरी सेशन में हुआ मंथन

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वैश्विक अधो-संरचना निर्माण विषयक एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति में विकसित, विकासशील एवं अल्पविकसित देशों की भूमिका पर हुआ विमर्श

भोपाल

अधो-संरचनाओं का विकास एवं जीवन की गुणवत्ता एक-दूसरे के पूरक हैं। वैश्विक विकास मॉडल में दोनों पहलु को महत्व देना, नीतियों के निर्माण एवं आगामी पीढ़ी के सकुशल और संरक्षित भविष्य के लिए आवश्यक है। पर्यावरण सम्मत जीवन शैली वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में नितांत आवश्यक है। "फाइनेंसिंग रेसिलिएंट इंफ्रा-स्ट्रक्चर एंड सस्टेनेबल ट्रांजिशन टूवर्डस लाइफ" सत्र में पूर्व डिप्टी गवर्नर, रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया, श्रीमती श्यामला गोपीनाथ की अध्यक्षता में "अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता, अत्याधुनिक तकनीकी एवं पर्याप्त वित्त की उपलब्धता" के विषय में भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में जी-20 अंतर्गत विशेष थिंक टी-20 कार्यक्रम के दूसरे प्लेनरी सेशन में मंथन हुआ।

श्रीमती गोपीनाथ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विश्व को भारत के पंचामृत लक्ष्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत के साथ विश्व को पर्यवरण अनुकूल विकास पथ को अपनाने के लिए वित्त की उपलब्धता महत्वपूर्ण है। इसमें विकास वित्त संस्थानों (DFI), मल्टीलेटरल इंस्टीट्यूशन, कार्बन मार्केंट इंस्ट्रूमेंट एवं विभिन्न राष्ट्रों की भूमिका का निर्धारण एवं सहयोगात्मक रवैया लक्ष्य की प्राप्ति को सुगम करेगा।

प्रो. एम. सुरेश बाबू सलाहकार प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति, नई दिल्ली ने कहा कि आज विश्व महामारी एवं मौसम की चरम घटनाओं से जूझ रहा है। इन घटनाओं ने अधो-संरचनाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर यह आवश्यकता प्रदर्शित की है कि अधो-संरचनाओं का ऐसा विकास किया जाए जो समय की मार एवं प्रकृति के परिवर्तनों को सह सके। साथ ही विकास कार्य पर्यावरण अनुरूप हों। इस कार्य में तकनीकी एवं अनुसन्धान के साथ वित्त उपलब्धता में वैश्विक सहयोग जरूरी है। अधो-संरचनात्मक विकास में प्रारंभिक व्यय की गणना के साथ उनके रख-रखाव को भी विचार में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे वह आगामी पीढ़ियों के लिए भी उपयोगी हो। इस प्रक्रिया में सामाजिक सहभागिता एवं साझा ज़िम्मेदारी अहम है। प्रचलित फाइनेंसिंग टूल के साथ नवीन वित्त स्त्रोतों में ध्यान देना चाहिए, इसमें समावेशी वित्त उपलब्धता के साथ सशक्त कानूनी ढाँचा होना आवश्यक है।

डॉ. निकोलस बुचौ, कोफाउंडर एवं प्रेसीडेंट, ग्रैंड पेरिस एलायंस फॉर मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट, फ्रांस ने इस बात को रेखांकित किया कि इनोवेशन शासकीय तंत्र से न आकर प्रबुद्ध वर्ग, निजी क्षेत्र एवं औद्योगिक वर्ग से प्राप्त होते हैं। अतः विभिन्न प्रबुद्ध वर्ग एवं वैश्विक तंत्र में सामंजस्य आवश्यक है।

प्रो. सोनी कपूर, यूरोपियन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट, इटली ने कहा कि ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति नवकरणीय एवं पर्यावरण अनुरूप संसाधन से करने पर पूंजीगत लागत में, प्रचलित संसाधनों से तीन गुना अधिक व्यय होगा। विकास और पर्यावरण का अनुषांगिक सम्बन्ध है। डॉ. कपूर ने इस बात पर जोर दिया कि भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है परन्तु पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए वैश्विक विकास में मानवीय केपिटल को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। ह्यूमन कैपिटल पर ध्यान देते हुए, मानवीय संसाधन के विकास के लिए वित्त एवं अन्य आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति अगर हम कर पाए तो यह वैश्विक विकास को बहुत बढ़ावा मिलेगा।

प्रो. नागेश कुमार, डायरेक्टर इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, इंडिया ने कहा कि एसडीजी लक्ष्यों का क्रियान्वयन वित्त की अनुपलब्धता के कारण धीमा है। कोविड महामारी में भी राष्ट्रों के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च हुआ। ऐसे में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बाहरी एवं अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता है। प्रो. कुमार ने इस दौरान वित्त प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय टैक्स अधिरोपित करने के सुझाव दिए।

प्रियांतो रोहमातुल्लाह, डायरेक्टर, स्टेट एपारेटस एंड ब्यूरोक्रेटिक ट्रांसफॉर्मेशन, BAPPENAS, इंडोनेशिया ने SDG लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इंडोनेशिया द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लो कार्बन टेक्नोलॉजी को प्रोत्साहित करने में भारत एवं इंडोनेशिया साथ चल रहे हैं।

प्रो. एन.आर. भानुमूर्ति, वीसी, डॉ. बी.आर. आंबेडकर स्कूल ऑफ़ इकनोमिक यूनिवर्सिटी, बैंगलुरु ने सामाजिक अधो-संरचना विकास पर जोर देते हुए कहा कि आज हमें बॉटम अप एप्रोच पर कार्य करना ज़रूरी है। उन्होंने शहरी के साथ ग्रामीण अधो-संरचना विकास पर भी ध्यान देने की सलाह दी। इस दौरान प्रो. भानुमूर्ति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में "वोकल फॉर लोकल", "वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट" पहल का उल्लेख भी किया।

प्रो. रजत कथूरिया डीन स्कूल ऑफ़ ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइंस, शिव नाडार यूनिवर्सिटी ने कहा कि विश्व के पास संसाधनों की कमी नहीं है। कमी है "एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य" सोच आधारित वैश्विक प्रतिबद्धता की। उन्होंने कहा कि वैश्विक विकास के साथ वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती असमानता की स्थिति सोचनीय है। वैश्विक समुदाय को इस दिशा में भी सशक्त एवं समर्पित कार्य करना चाहिए।

सत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा, विभिन्न देशों से आये प्रबुद्धजन एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

 

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