नईदिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल ने न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की है। उनका कहना है कि कई गरीब सलाखों के पीछे सिर्फ इसलिए रह जाते हैं, क्योंकि वे खर्च नहीं उठा सकते। जबकि, वकील करने में सक्षम अमीरों को जमानत मिल जाती है। इस दौरान उन्होंने जेलों में सालों से बंद विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया।
अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी स्पेशल कैंपेन 2023 की लॉन्चिंग के मौके पर जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब और अशिक्षितों को हिरासत में लिए जाने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। उन्होंने कहा, 'न्यायाधीशों के तौर पर हमारी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि कानून का पालन और उनके साथ इस आधार पर भेदभाव न हो कि वे किस स्तर के वकील की सहायता ले पा रहे हैं।'
इस अभियान के तहत उन कैदियों की पहचान और समीक्षा करना है, जिनकी रिहाई पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक रखे जाने की बात डराने वाली है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर कोई भी अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता। जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब कैदियों को लगातार हिरासत में रखे जाने का असर उनपर और उनके परिवार पर पड़ता है।
जस्टिस कौल ने कहा कि जेल में बंद ऐसे विचाराधीन कैदियों का मुद्दा न्यायपालिका के सामने उठता रहा है, जो रिहाई की समीक्षा किए जाने के योग्य हैं। इस दौरान उन्होंने न्याय व्यवस्था से गरीबों की मदद की भी अपील की और कहा कि वे कानूनी सहायता में लगने वाला खर्च नहीं उठा सकते।
उन्होंने कहा, 'आज हिरासत को विकास के संदर्भ में देखा जा रहा है। दोष सिद्ध होने से पहले हिरासत में रखे जाना आपराधिक न्याय संसाधनों को भटका देता है और आरोपियों और उनके परिवारों पर बोझ डालता है।'
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