नईदिल्ली
आंखों के कैंसर को मात देकर सामान्य जिंदगी जी रहे बच्चों को एम्स ब्रांड एंबेसडर बनाएगा। इनमें से कई बच्चों ने इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेज में दाखिले की परीक्षा पास की। अब यह आंखों के कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा की टारगेट थेरेपी को प्रोत्साहित करते हुए दिखेंगे। ब्रांड एंबेसडर बनकर इनकी कोशिश मरीजों के साथ मेडिकल संस्थानों को भी राह दिखाने की होगी।
एम्स प्रशासन का कहना है कि जल्द ही इनको ब्रांड एंबेसडर बनाकर एम्स से जोड़ा जाएगा। दरअसल, एम्स दिल्ली में ही टारगेट थेरेपी से रेटिनोब्लास्टोमा के उपचार की सुविधा है। हर साल देश में दो हजार से अधिक बच्चों में यह रोग हो रहा है। अकेला सरकारी संस्थान होने से एम्स में मरीजों का दबाव ज्यादा है। जबकि समय पर इलाज न मिलने से आंखों की रोशनी जाने से लेकर मरीज की मौत तक हो जाती है। ऐसे में एम्स प्रशासन इस थेरेपी को दूसरे एम्स व सहित देश के अन्य संस्थानों में प्रमोट करने की योजना बनाई है। इसमें मरीजों को भी इस बारे में जागरूक करना है।
दे रहे हैं ट्रेनिंग
इस तरह के इलाज में नेत्र विज्ञान विभाग, न्यूरो ऑन्कोलॉजी, इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजी, बाल रोग विभाग, न्यूरोनेथिसिया विभाग की मदद ली जाती है। एम्स दिल्ली की देखरेख में सुविधा के विस्तार जोधपुर और गुवाहाटी एम्स में भी किया जा रहा है। इसके लिए ट्रेनिंग तक दी जा रही है।
ट्यूमर पर होता सीधा वार
एम्स के तंत्रिका विकिरण एवं उपचार विभाग के प्रमुख व प्राेफेसर डॉ. शौलेश गायकवाड़ ने बताया कि इस टारगेट थेरेपी की मदद से सीधे ट्यूमर पर वार किया जाता है। इसमें दवा की डोज भी कम लगती है जिस कारण शरीर के अन्य हिस्सों पर दुष्प्रभाव भी नहीं होता। जबकि सामान्य कीमोथेरेपी से शरीर के अन्य हिस्सों में असर होता है। इससे 65% बच्चों की आंखों की रोशनी को बचाया गया है। अब हर सप्ताह तीन से चार बच्चों का इससे इलाज किया जा रहा है।
बच्चों की थेरेपी से लौटी रोशनी
टारगेट थेरेपी से एम्स में कैंसर के इलाज करवाने वाले 65% बच्चों के आंखों की रोशनी लौटी है। पिछले 10 साल में एम्स इस विधि से 170 बच्चों का सफल इलाज कर चुका है। इसमें जांघिक धमनी के रास्ते एक कैथेटर को नेत्र धमनी से होते हुए आंख हिस्से तक पहुंचाया जाता है, जहां ट्यूमर है। माइक्रो कैथेटर की मदद से प्रभावित हिस्से पर दवा डाली जाती। इससे ट्यूमर छोटे-छोटे हिस्सों में टूटकर खत्म हो जाता है। एक डोज दवा देने की इस प्रक्रिया में करीब 2-3 घंटे का समय लगता है। थेरेपी में कई बार बच्चे पर एक डोज में असर हो जाता है और कई बार 3-4 डोज की जरूरत पड़ जाती है।
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